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जयशंकर प्रसाद की कहानियां

जयशंकर प्रसाद

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :435
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9810
आईएसबीएन :9781613016114

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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ


“येन केन प्रकारेण प्रसिद्ध: पुरुषो भवेत् ।”

ब्रह्मा- अब तो शंकर की आज्ञा हुई है, जैसे-तैसे इसको करना ही होगा, किन्तु हम देखते हैं कि गणेशजी जननी को प्रिय हैं; अतएव यदि उनकी कुछ भी निचाई होगी, तो जननी दूसरी बात समझेंगी! अस्तु! अब कोई ऐसा उपाय करना होगा कि जिसमें बुद्धि से जो जीते, वही विजयी हो। अच्छा, अब सबको शंकर के समीप इकठ्ठा करो।

नारद यह सुनकर प्रणाम करके चले।

विशाल वटवृक्षतले सब देवताओं से सुशोभित शंकर विराजमान हैं। पंचायत जम रही है। ब्रह्माजी कुछ सोचकर बोले- गणेशजी और कुमार में इस बात का झगड़ा हुआ है कि कौन बड़ा है? अस्तु, हम यह कहते हैं कि जो इन लोगों में से समग्र विश्व की परिक्रमा करके पहले आवेगा, वही बड़ा होगा।

स्कन्द ने सोचा- चलो अच्छी भई, गणेश स्वयं तुन्दिल हैं - मूषक-वाहन पर कहाँ तक दौड़ेंगे, और मोर पर मैं शीघ्र ही पृथ्वी की परिक्रमा कर आऊँगा।

फिर वह मोर पर सवार होकर दौड़े। गणेश ने सोचा कि भव और भवानी ही तो पिता-माता हैं, अब उनसे बढक़र कौन विश्व होगा। अस्तु, यह विचारकर शीघ्र ही जगज्जनक, जननी की परिक्रमा करके बैठ गये।

जब कुमार जल्दी-जल्दी घूमकर आये, तो देखा, तुन्दिलजी अपने स्थान पर बैठे हैं।

ब्रह्मा ने कहा- देखो, गणेशजी आपके पहले घूमकर आ गये हैं!

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