कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
वीर कुमार हम्मीर अवाक्
होकर देखने लगे। फिर उसका हाथ पकड़कर पास में बैठा
लिया। राजकुमारी शीघ्रता से उतरकर पलंग के नीचे बैठ गयी।
दाम्पत्य-सुख
से अपरिचित कुमार की भँवे कुछ चढ़ गयीं, किन्तु उसी क्षण यौवन के नवीन
उल्लास ने उन्हें उतार दिया। हम्मीर ने कहा- फिर क्यों तुम इतना उत्कण्ठित
कर रही हो? सुन्दरी! कहो, क्या बात है?
राजकुमारी- मैं विधवा
हूँ। सात वर्ष की अवस्था में, सुना है कि मेरा ब्याह हुआ और आठवें वर्ष
विधवा हुई। यह भी सुना है कि विधवा का शरीर अपवित्र होता है। तब,
जगत्पवित्र शिशौदिया-कुल के कुमार को छूने का कैसे साहस कर सकती हूँ?
हम्मीर- हैं! तुम क्या
विधवा हो? फिर तुम्हारा ब्याह पिता ने क्यों किया?
राजकुमारी- केवल देवता को
अपमानित करने के लिये।
हम्मीर
की तलवार में स्वयं एक झनकार उत्पन्न हुई। फिर भी उन्होंने शान्त होकर
कहा- अपमान इससे नहीं होता, किन्तु परिणीता वधू को छोड़ देने में अवश्य
अपमान है।
राजकुमारी- प्रभो! पतिता
को लेकर आप क्यों कलंकित होते हैं?
हम्मीर ने मुस्कुराकर
कहा- ऐसे निर्दोष और सच्चे रत्न को लेकर कौन कलंकित
हो सकता है?
राजकुमारी
संकुचित हो गयी। हम्मीर ने हाथ पकड़कर उठाकर पलँग पर बैठाया, और कहा- आओ,
तुम्हें मुझसे-समाज, संसार-कोई भी नहीं अलग कर सकता।
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