कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
रघुनाथ
की यह बात मुझे बहुत बुरी लगी। मेरी आँखों के सामने चारों ओर जैसे होली
जलने लगी। ठीक साल भर बाद वही व्यापारी प्रयाग आया और मुझे फिर उसी प्रकार
जाना पड़ा। होली बीत चुकी थी, जब मैं प्रयाग से लौट रहा था, उसी कुएँ पर
ठहरना पड़ा। देखा तो एक विकलांग दरिद्र युवती उसी दालान में पड़ी थी। उसका
चलना-फिरना असम्भव था। जब मैं कुएँ पर चढऩे लगा, तो उसने दाँत निकालकर हाथ
फैला दिया। मैं पहचान गया-साल भर की घटना सामने आ गयी। न जाने उस दिन मैं
प्रतिज्ञा कर बैठा कि आज से होली न खेलूँगा।
वह पचास बरस की बीती
हुई घटना आज भी प्रत्येक होली में नई होकर सामने आती है। तुम्हारे बड़े
भाई गिरिधर ने मुझे कई बार होली मनाने का अनुरोध किया, पर मैं उनसे सहमत न
हो सका और मैं अपने हृदय के इस निर्बल पक्ष पर अभी तक दृढ़ हूँ। समझा न,
गोपाल! इसलिए मैं ये दो दिन बनारस के कोलाहल से अलग नाव पर ही बिताता हूँ।
|