कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
नारी ने इन दोनों भावों
की अभिव्यक्ति को
स्थायी रूप देना चाहा। शावक की आँखों में उसने पहला चित्र देखा था। कुचली
हुई वेतस की लता को उसने धातुराग में डुबोया और अपनी तिकोनी गुफा में पहली
चितेरिन चित्र बनाने बैठी। उसके पास दो रंग थे, एक गैरिक, दूसरा कृष्ण।
गैरिक से उसने अपना चित्र बनाया, जिसमें हिरनों के झुण्ड मं। स्वयं वही
खड़ी थी, और कृष्ण धातुराग से आखेट का चित्र, जिसमें पशुओं के पीछे अपना
भाला ऊँचा किये हुए भीष्म आकृति का नर था।
नदी का वह तट,
अमंगलजनक स्थान बहुत काल तक नर-सञ्चार-वर्जित रहा; किन्तु नारी वहीं अपने
जीवनपर्यन्त उन दोनों चित्रों को देखती रहती और अपने को कृतकृत्य समझती।
विन्ध्य के अञ्चल में
मनुष्यों के कितने ही दल वहाँ आये और गये। किसी ने
पहले उस चित्र-मन्दिर को भय से देखा, किसी ने भक्ति से।
मानव-जीवन
के उस काल का वह स्मृतिचिह्न—जब कि उसने अपने हृदय-लोक में संसार के दो
प्रधान भावों को प्रतिष्ठा की थी—आज भी सुरक्षित है। उस प्रान्त के जंगली
लोग उसे राजधानी की गुफा और ललितकला के खोजी उसे पहला चित्र-मन्दिर कहते
हैं।
|