कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“बहूजी, आज-कल ख़रीदने की
धुन में हूँ, बेचती
हूँ कम।” इतना कहकर कई दर्जन चूडिय़ाँ बाहर सजा दीं। स्लीपरों के शब्द
सुनाई पड़े। बहूजी ने कपड़े सम्हाले, पर वह ढीठ चूड़ीवाली बालिकाओं के
समान सिर टेढ़ा करके “यह जर्मनी की है, यह फराँसीसी है, यह जापानी है”
कहती जाती थी। सरकार पीछे खड़े मुस्करा रहे थे।
“क्या रोज नयी चूडिय़ाँ
पहनाने के लिए इन्हें हुक्म मिला है?” बहूजी ने
गर्व से पूछा।
सरकार ने कहा-”पहनो, तो
बुरा क्या है?”
“बुरा
तो कुछ नहीं, चूड़ी चढ़ाते हुए कलाई दुखती होगी।” चूड़ीवाली ने सिर नीचा
किये कनखियों से देखते हुए कहा! एक लहर-सी लाली आँखों की ओर से कपोलों को
तर करती हुई दौड़ जाती थी। सरकार ने देखा, एक लालसा-भरी युवती व्यंग कर
रही है। हृदय में हलचल मच गयी, घबराकर बोले-”ऐसा है, तो न पहनें।”
“भगवान करें, रोज पहनें।”
चूड़ीवाली आशीर्वाद देने के गम्भीर स्वर में
प्रौढ़ा के समान बोली।
“अच्छा, तुम अभी जाओ।”
सरकार और चूड़ीवाली दोनों की ओर देखते हुए बहूजी ने
झुँझलाकर कहा।
“तो क्या मैं लौट जाऊँ?
आप तो कहती थीं न, कि सरकार को ही पहनाओ, तो जरा
उनसे पहनने के लिए कह दीजिए”
“निकल
मेरे यहाँ से।” कहते हुए बहूजी की आँखे तिलमिला उठी। सरकार धीरे से निकल
गये। अपराधी के समान सर नीचा किये चूड़ीवाली अपनी चूडिय़ाँ बटोरकर उठी।
हृदय की धड़कन में अपनी रहस्यपूर्ण निश्वास छोड़ती हुई चली गयी।
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