कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
विजयकेतु- (काँपकर) जो
महाराज की आज्ञा!
अशोक- जाओ, शीघ्र जाओ।
विजयकेतु
चला गया। महाराज अभी वहीं खड़े हैं। नूपुर का कलनाद सुनाई पड़ा। अशोक ने
चौंककर देखा, तो बीस-पचीस दासियों के साथ महारानी तिष्यरक्षिता चली आ रही
हैं।
अशोक- प्रिये! तुम यहाँ
कैसे?
तिष्यरक्षिता-
प्राणनाथ! शरीर से कहीं छाया अलग रह सकती है? बहुत देर हुई, मैंने सुना था
कि आप आ रहे हैं; पर बैठे-बैठे जी घबड़ा गया कि आने में क्यों देर हो रही
है। फिर दासी से ज्ञात हुआ कि आप महल के नीचे बहुत देर से टहल रहे हैं।
इसीलिये मैं स्वयं आपके दर्शन के लिये चली आई। अब भीतर चलिये!
अशोक- मैं तो आ ही रहा
था। अच्छा चलो।
अशोक और तिष्यरक्षिता
समीप के सुन्दर प्रासाद की ओर बढ़े। दासियाँ पीछे
थीं।
राजकीय
कानन में अनेक प्रकार के वृक्ष, सुरभित सुमनों से भरे झूम रहे हैं। कोकिला
भी कूक-कूक कर आम की डालों को हिलाये देती है। नव-वसंत का समागम है।
मलयानिल इठलाता हुआ कुसुम-कलियों को ठुकराता जा रहा है।
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