कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
एक
पुराने पलँग पर, जीर्ण बिछौने पर, जहाँआरा पड़ी थी और केवल एक धीमी साँस
चल रही थी। औरंगजेब ने देखा कि वह जहाँआरा है, जिसके लिये भारतवर्ष की कोई
वस्तु अलभ्य नहीं थी, जिसके बीमार पड़ने पर शाहजहाँ भी व्यग्र हो जाता था
और सैकड़ों हकीम उसे आरोग्य करने के लिये प्रस्तुत रहते थे। वह इस तरह एक
कोने में पड़ी है!
पाषाण भी पिघला, औरंगजेब
की आँखें आँसू से भर
आयीं और वह घुटने के बल बैठ गया। समीप मुँह ले जाकर बोला- बहिन, कुछ हमारे
लिये हुक्म है?
जहाँआरा ने अपनी आँखें
खोल दीं और एक पुरजा उसके
हाथ में दिया, जिसे झुककर औरंगजेब ने लिया। फिर पूछा- बहिन, क्या तुम हमें
माफ करोगी?
जहाँआरा ने खुली हुई
आँखों को आकाश की ओर उठा दिया।
उस समय उनमें से एक स्वर्गीय ज्योति निकल रही थी और वह वैसे ही देखती रह
गयी। औरंगजेब उठा और उसने आँसू पोंछते हुए पुरजे को पढ़ा।
उसमें लिखा था -
कि कब्रपोश गरीबाँ हमीं गयाह बसस्त।।
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