कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पथिक ने उत्साह के साथ
जाकर उस युवक के कंधे को पकड़ कर हिलाया। युवक का
ध्यान टूटा। उसने पलटकर देखा।
पथिक
का वीर-वेश भी सुन्दर था। उसकी खड़ी मूँछें उसके स्वाभाविक गर्व को तनकर
जता रही थीं। युवक को उसके इस असभ्य बर्ताव पर क्रोध तो आया, पर कुछ सोचकर
वह चुप हो रहा। और, इधर पथिक ने सरल स्वर से एक छोटा-सा प्रश्न कर दिया-
क्यों भई, तुम्हारा नाम क्या है?
युवक ने उत्तर दिया-
रामप्रसाद।
पथिक- यहाँ कहाँ रहते हो?
अगर बाहर के रहने वाले हो, तो चलो, हमारे घर पर
आज ठहरो।
युवक
कुछ न बोला, किन्तु उसने एक स्वीकार-सूचक इंगित किया। पथिक और युवक,
दोनों, अश्व के समीप आये। पथिक ने उसकी लगाम हाथ में ले ली। दोनों पैदल ही
सड़क की ओर बढ़े।
दोनों एक विशाल दुर्ग के
फाटक पर पहुँचे और
उसमें प्रवेश किया। द्वार के रक्षकों ने उठकर आदर के साथ उस पथिक को
अभिवादन किया। एक ने बढक़र घोड़ा थाम लिया। अब दोनों ने बड़े दालानों और
अमराइयों को पार करके एक छोटे से पाईं बाग में प्रवेश किया।
रामप्रसाद
चकित था, उसे यह नहीं ज्ञात होता था कि वह किसके संग कहाँ जा रहा है। हाँ,
यह उसे अवश्य प्रतीत हो गया कि यह पथिक इस दुर्ग का कोई प्रधान पुरुष है।
पाईं
बाग में बीचोबीच एक चबूतरा था, जो संगमरमर का बना था। छोटी-छोटी सीढिय़ाँ
चढक़र दोनों उस पर पहुँचे। थोड़ी देर में एक दासी पानदान और दूसरी वारुणी
की बोतल लिये हुए आ पहुँची।
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