कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
सुल्तान ने सिल्जूको से
हारे हुए तुर्क और हिन्दू दोनों को ही नौकरी से
अलग कर दिया। पर तुर्कों ने तो मरने की बात नहीं सोची?
कुछ भी हो, तुर्क सुल्तान
के अपने लोगों में हैं और हिन्दू बेगाने ही हैं।
फिरोज़ा! यह अपमान मरने से बढ़ कर है।
और आज किसलिये मरने जा
रहे थे?
वह सुनकर क्या करोगी? -
कहकर बलराज छुरा फेंककर एक लम्बी साँस लेकर चुप हो
रहा। फिरोज़ा ने उसका कन्धा पकड़कर हिलाते हुए कहा-
सुनूँगी
क्यों नहीं। अपनी....हाँ, उसी के लिए! कौन है वह! कैसी है? बलराज! गोरी सी
है, मेरी तरह वह भी पतली-दुबली है न? कानों में कुछ पहनती है? और गले में?
कुछ नहीं फिरोज़ा, मेरी
ही तरह वह भी कंगाल है। मैंने उससे कहा था
कि लड़ाई पर जाऊँगा और सुल्तान की लूट में मुझे भी चाँदी-सोने की ढेरी
मिलेगी, जब अमीर हो जाऊँगा, तब आकर तुमसे ब्याह करूँगा।
तब भी
मरने जा रहे थे! ख़ाली ही लौट कर भेंट करने की, उसे एक बार देख लेने की,
तुम्हारी इच्छा न हुई! तुम बड़े पाजी हो। जाओ, मरो या जियो, मैं तुमसे न
बोलूँगी।
सचमुच फिरोज़ा ने मुँह
फेर लिया। वह जैसे रूठ गई थी।
बलराज को उसके इस भोलेपन पर हँसी न आ सकी। वह सोचने लगा, फिरोज़ा के हृदय
में कितना स्नेह है! कितना उल्लास है? उसने पूछा-फिरोज़ा, तुम भी तो लड़ाई
में पकड़ी गई ग़ुलामी भुगत रही हो। क्या तुमने कभी अपने जीवन पर विचार
किया है? किस बात का उल्लास है तुम्हें?
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