कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“वह सौन्दर्य, मदिरा की
तरह नशीला, चाँदनी-सा उज्ज्वल, तरंगों-सा
यौवनपूर्ण और अपनी हँसी-सा निर्मल था।”
“किन्तु हलाहल भरी उसकी
अपांगधारा! आह निर्दय!”
“मरण और जीवन का रहस्य उन
संकेतों में छिपा था।”
“आज भी न जाने क्यों
भूलने में असमर्थ हूँ।”
“कुञ्जों में फूलों के
झुरमुट में तुम छिप सकोगे। तुम्हारा वह चिर विकासमय
सौन्दर्य! वह दिगन्तव्यापी सौरभ! तुमको छिपने देगा?”
“मेरी विकलता को देखकर
प्रसन्न होनेवाले! मैं बलिहारी!”
नूरी
वहीं खड़ी होकर सुन रही थी। वह कौआलों के लिए भोजन लिवाकर आयी थी। गाढ़े
का पायजामा और कुर्ता, उस पर गाढ़े की ओढ़नी। उदास और दयनीय मुख पर
निरीहता की शान्ति! नूरी में विचित्र परिवर्तन था। उसका हृदय अपनी विवश
पराधीनता भोगते-भोगते शीतल और भगवान् की करुणा का अवलम्बी बन गया था। जब
सन्त सलीम की समाधि पर वह बैठकर भगवान् की प्रार्थना करती थी, तब उसके
हृदय में किसी प्रकार की सांसारिक वासना या अभाव-अभियोग का योग न रहता। आज
न जाने क्यों, इस संगीत ने उसकी सोयी हुई मनोवृत्ति को जगा दिया। वही
मौलसिरी का वृक्ष था। संगीत का वह अर्थ चाहे किसी अज्ञात लोक की परम सीमा
तक पहुँचता हो; किन्तु आज तो नूरी अपने संकेतस्थल की वही घटना स्मरण कर
रही थी, जिसमें एक सुन्दर युवक से अपने हृदय की बातों के खोल देने का
रहस्य था। वह काश्मीर का शाहजादा आज कहाँ होगा? नूरी ने चञ्चल होकर वहीं
थालों को रखवा दिया और स्वयं धीरे-धीरे अपने उत्तेजित हृदय को दबाये हुए
सन्त की समाधि की ओर चल पड़ी। संगमरमर की जालियों से टिककर वह बैठ गयी।
सामने चन्द्रमा की किरणों का समारोह था। वह ध्यान में निमग्न थी। उसकी
निश्चल तन्मयता के सुख को नष्ट करते हुए किसी ने कहा—”नूरी! क्या अभी सराय
में खाना न जायगा?”
|