कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
महाराज ने गम्भीर होकर
अमात्य से कहा- तिष्यरक्षिता को बुलाओ।
महामात्य ने कुछ बोलने की
चेष्टा की, किन्तु महाराज के भृकुटिभंग ने
उन्हें बोलने से निरस्त किया; अब वह स्वयं उठे और चले।
महादेवी
तिष्यरक्षिता राजसभा में उपस्थित हुईं। अशोक ने गम्भीर स्वर से पूछा- यह
तुम्हारी लेखनी से लिखा गया है? क्या उस दिन तुमने इसी कुकर्म के लिये
राजमुद्रा छिपा ली थी? क्या कुनाल के बड़े-बड़े सुन्दर नेत्रों ने ही
तुम्हें आँखें निकलवाने की आज्ञा देने के लिये विवश किया था? अवश्य
तुम्हारा ही यह कुकर्म है। अस्तु, तुम्हारी-ऐसी स्त्री को पृथ्वी के ऊपर
नहीं, किन्तु भीतर रहना चाहिये।
सब लोग काँप उठे। कुनाल
ने आगे बढ़ घुटने टेक दिये और कहा- क्षमा।
अशोक ने गम्भीर स्वर से
कहा- नहीं।
तिष्यरक्षिता
उन्हीं पुरुषों के साथ गयी, जो लोग उसे जीवित समाधि देनेवाले थे। महामात्य
ने राजकुमार कुनाल को आसन पर बैठाया और धर्मरक्षिता महल में गयी।
महामात्य ने एक पत्र और
अँगूठी महाराज को दी। यह पौण्ड्रवर्धन के शासक का
पत्र तथा वीताशोक की अँगूठी थी।
पत्र-पाठ करके और मुद्रा
को देखकर वही कठोर अशोक विह्वल हो गये, ओर अवसन्न
होकर सिंहासन पर गिर पड़े।
उसी दिन से कठोर अशोक ने
हत्या की आज्ञा बन्द कर दी, स्थान-स्थान पर
जीवहिंसा न करने की आज्ञा पत्थरों पर खुदवा दी गयी।
कुछ
ही काल के बाद महाराज अशोक ने उद्विग्न चित्त को शान्त करने के लिये भगवान
बुद्ध के प्रसिद्ध स्थानों को देखने के लिए धर्म-यात्रा की।
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