कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पुत्र शिष्य ने कहा-
”भगवान वशिष्ठ ने क्या कहा?”
त्रिशंकु ने उत्तर दिया-
”भगवान वशिष्ठ ने तो असम्भव कहा है।”
यह
सुनकर वशिष्ठ-पुत्रों को बड़ा क्रोध हुआ, और बड़ी उग्रता से वे बोल उठे-
”मतिमन्द त्रिशंकु, तुझे क्या हो गया, गुरु पर अविश्वास! तुझे तो इस पाप
के फल से चाण्डालत्व को प्राप्त होना चाहिए।”
इस श्राप से त्रिशंकु
श्री-भ्रष्ट होकर चाण्डालत्व को प्राप्त हुआ; स्वर्ग
के बदले चाण्डालत्व मिला-पुण्य करते पाप हुआ!
श्री-भ्रष्ट
होकर त्रिशंकु विलाप करता हुआ जा रहा है कि सहसा नारद का दर्शन हुआ।
सार्वभौम महाराज की ऐसी अवस्था देखकर नारद ने पूछा- ”राजन्! यह क्या?”
बिलखते हुए त्रिशंकु ने सारी कथा सुनाई। नारद ने कहा- ”आप क्यों हताश होते
हैं, मैं आपको एक कथा सुनाता हूँ, सुनिए-
“बहुत दिन हुए
विश्वामित्र नामक एक राजा अपनी चतुरंगिनी सेना को लिए हुए, आखेट करता हुआ,
वशिष्ठाश्रम में पहुँचा। वहाँ शान्तिमयी प्राकृतिक शोभा देखकर ब्रह्मर्षि
वशिष्ठ के दर्शन की अभिलाषा उसके चित्त में उत्पन्न हुई। वहाँ के आतिथ्य
से वह बहुत ही प्रसन्न हुआ। अरण्यवासी ऋषिकल्पों की सरल अभ्यर्थना से वह
आनन्दित हुआ; परन्तु जब उसे ससैन्य आमन्त्रण मिला, तब बहुत ही चकित हुआ।
जब उसने वहाँ जाकर देखा कि कुछ नहीं है, तब और भी आश्चर्यान्वित हुआ।
भगवान् वशिष्ठ ने ब्रह्मविद्या-स्वरूपिणी ‘कामधेनु’ से सब वस्तुएँ माँग
लीं और कई दिन तक उन सैनिकों के सहित विश्वामित्र को रखा।
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