कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“नहीं मिन्ना! रूखी-सूखी
पर निभा लेनेवाले ऐसा नहीं कर सकते!”
“कर सकते हैं मिन्ना! कह
दो, हाँ!”
मिन्ना घबरा उठा था। यह
तो बातों का नया ढंग था। वह समझ न सका। उसने कह
दिया-”हाँ, कर सकते हैं।”
“चल
देख लिया। ऐसे ही करनेवाले!”- कहकर ज़ोर से किवाड़ बन्द करती हुई इन्दो
चली गयी। ब्रजराज के हृदय में विरक्ति चमकी। बिजली की तरह कौंध उठी घृणा।
उसे अपने अस्तित्व पर सन्देह हुआ। वह पुरुष है या नहीं? इतना कशाघात! इतना
सन्देह और चतुर सञ्चालन! उसका मन घर से विद्रोही हो रहा था। आज तक बड़ी
सावधानी से कुशल महाजन की तरह वह अपना सूद बढ़ाता रहा। कभी स्नेह का
प्रतिदान लेकर उसने इन्दो को हल्का नहीं होने दिया था। इसी घड़ी
सूद-दर-सूद लेने के लिए उसने अपनी विरक्ति की थैली का मुँह खोल दिया।
मिन्ना
को एक बार गोद में चिपका कर वह खड़ा हो गया। जब गाँव के लोग हलों को
कन्धों पर लिये घर लौट रहे थे, उसी समय ब्रजराज ने घर छोड़ने का निश्चय कर
लिया।
जालन्धर से जो सड़क
ज्वालामुखी को जाती है, उस पर इसी साल
से एक सिक्ख पेन्शनर ने लारी चलाना आरम्भ किया। उसका ड्राइवर कलकत्ते से
सीखा हुआ फुर्तीला आदमी है। सीधे-सादे देहाती उछल पड़े। जिनकी मनौती कई
साल से रुकी थी, बैल-गाड़ी की यात्रा के कारण जो अब तब टाल-मटोल करते थे,
वे उत्साह से भरकर ज्वालामुखी के दर्शन के लिए प्रस्तुत होने लगे।
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