कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
जब
बाल्टी लिये वह यात्रियों की ओर गया, तो उसको भ्रम हुआ कि जो सुन्दरी
स्त्री पानी के लिए लोटा बढ़ा रही है, वह कुछ पहचानी-सी है। उसने लोटे में
पानी उँड़ेलते हुए अन्यमनस्क की तरह कुछ जल गिरा भी दिया, जिससे स्त्री की
ओढ़नी का कुछ अंश भीग गया। यात्री ने झिड़ककर कहा-
“भाई, जरा देखकर।”
किन्तु वह स्त्री भी उसे
कनखियों से देख रही थी। ‘ब्रजराज!’ शब्द उसके भी
कानों में गूँज उठा था। ब्रजराज अपनी सीट पर जा बैठा।
बूढ़े
सिख और यात्री दोनों को ही उसका यह व्यवहार अशिष्ट-सा मालूम हुआ; पर कोई
कुछ बोला नहीं। लारी चलने लगी। काँगड़ा की तराई का यह पहाड़ी दृश्य,
चित्रपटों की तरह क्षण-क्षण पर बदल रहा था। उधर ब्रजराज की आँखे कुछ दूसरे
ही दृश्य देख रही थीं।
गाँव का वह ताल, जिसमें
कमल खिल रहे थे,
मिन्ना के निर्मल प्यार की तरह तरंगायित हो रहा था। और उस प्यार में
विश्राम की लालसा, बीच-बीच में उसे देखते ही, मालती का पैर के अँगूठों के
चाँदी के मोटे छल्लों को खटखटाना, सहसा उसकी स्त्री का सन्दिग्ध भाव से
उसको बाहर भेजने की प्रेरणा, साधारण जीवन में बालक के प्यार से जो सुख और
सन्तोष उसे मिल रहा था, वह भी छिन गया; क्यों सन्देह हो न! इन्दो को
विश्वास हो चला था कि ब्रजराज मालो को प्यार करता है। और गाँव में एक ही
सुन्दरी, चञ्चल, हँसमुख और मनचली भी थी, उसका ब्याह नहीं हुआ था। हाँ, वही
तो मालो?-और यह ओढ़नीवाली! ऐं, पंजाबी में? असम्भव! नहीं तो-वही
है-ठीक-ठीक वही है। वह चक्का पकड़े हुए पीछे घूमकर अपनी स्मृतिधारा पर
विश्वास कर लेना चाहता था। ओह! कितनी भूली हुई बातें इस मुख ने स्मरण दिला
दीं। वही तो-वह अपने को न रोक सका। पीछे घूम ही पड़ा और देखने लगा।
लारी
टकरा गई एक वृक्ष से। कुछ अधिक हानि न होने पर भी, किसी को कहीं चोट न
लगने पर भी सिख झल्ला उठा। ब्रजराज भी फिर लारी पर न चढ़ा। किसी को किसी
से सहानुभूति नहीं। तनिक-सी भूल भी कोई सह नहीं सकता, यही न! ब्रजराज ने
सोचा कि मैं ही क्यों न रूठ जाऊँ? उसने नौकरी को नमस्कार किया।
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