कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
अकस्मात् एक दिन, जब
सूर्य की किरणें
सुवर्ण-सी सु-वर्ण आभा धारण किए हुई थीं, नदी का जल मौज में बह रहा था, उस
समय मदन किनारे खड़ा हुआ स्थिर भाव से नदी की शोभा निहार रहा था। उसको
वहाँ कई-एक सुसज्जित जलयान देख पड़े। उसका चित्त, न जाने क्यों उत्कण्ठित
हुआ। अनुसन्धान करने पर पता लगा कि वहाँ वार्षिक जल-विहार का उत्सव होता
है, उसी में लोग जा रहे हैं।
मदन के चित्त में भी
उत्सव देखने की
आकांक्षा हुई। वह भी अपनी नाव पर चढक़र उसी ओर चला। कल्लोलिनी की कल्लोलों
में हिलती हुई वह छोटी-सी सुसज्जित तरी चल दी।
मदन उस स्थान पर
पहुँचा, जहाँ नावों का जमाव था। सैकड़ों बजरे और नौकाएँ अपने नीले-पीले,
हरे-लाल निशान उड़ाती हुई इधर-उधर घूम रही हैं। उन पर बैठे हुए मित्र लोग
आपस में आमोद-प्रमोद कर रहे हैं। कामिनियाँ अपने मणिमय अलंकारों की प्रभा
से उस उत्सव को आलोकमय किये हुई हैं।
मदन भी अपनी नाव पर बैठा
हुआ एकटक इस उत्सव को देख रहा है। उसकी आँखें जैसे किसी को खोज रही हैं।
धीरे-धीरे सन्ध्या हो गयी। क्रमश: एक, दो, तीन तारे दिखाई दिये। साथ ही,
पूर्व की तरफ, ऊपर को उठते हुए गुब्बारे की तरह चंद्रबिम्ब दिखाई पड़ा।
लोगों के नेत्रों में आनन्द का उल्लास छा गया। इधर दीपक जल गये। मधुर
संगीत, शून्य की निस्तब्धता में, और भी गूँजने लगा। रात के साथ ही
आमोद-प्रमोद की मात्रा बढ़ी।
परन्तु मदन के हृदय में
सन्नाटा
छाया हुआ है। उत्सव के बाहर वह अपनी नौका को धीरे-धीरे चला रहा है।
अकस्मात् कोलाहल सुनाई पड़ा, वह चौंककर उधर देखने लगा। उसी समय कोई
चार-पाँच हाथ दूर एक काली-सी चीज दिखाई दी। अस्त हो रहे चन्द्रमा का
प्रकाश पड़ने से कुछ वस्त्र भी दिखाई देने लगा। वह बिना कुछ सोचे-समझे ही
जल में कूद पड़ा और उसी वस्तु के साथ बह चला।
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