कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
इतना कहकर युवक ने पहाड़ी
पर से कूदना चाहा; पर सैनिक ने उसे पकड़ लिया,
और कहा- रसिया! ठहरो!
युवक अवाक् हो गया;
क्योंकि अब पाँच प्रहरी सैनिक के सामने सिर झुकाये
खड़े थे, और पूर्व सैनिक स्वयं अर्बुदगिरि के महाराज थे।
महाराज
आगे हुए और सैनिकों के बीच में रसिया। सब सिंहद्वार की ओर चले। किले के
भीतर पहुँचकर रसिया को साथ में लिये हुए महाराज एक प्रकोष्ठ में पहुँचे।
महाराज ने प्रहरी को आज्ञा दी कि महारानी और राजकुमारी को बुला लावे। वह
प्रणाम कर चला गया।
महाराज- क्यों बलवंत
सिंह! तुमने अपनी यह क्या दशा बना रक्खी है?
रसिया- (चौंककर) महाराज
को मेरा नाम कैसे ज्ञात हुआ?
महाराज- बलवंत! मैं बचपन
से तुम्हें जानता हूँ और तुम्हारे पूर्व पुरुषों
को भी जानता हूँ।
रसिया चुप हो गया। इतने
में महारानी भी राजकुमारी को साथ लिये हुए आ गयीं।
महारानी ने प्रणाम कर
पूछा- क्या आज्ञा है?
महाराज-
बैठो, कुछ विशेष बात है। सुनो, और ध्यान से उसका उत्तर दो। यह युवक जो
तुम्हारे सामने बैठा है, एक उत्तम क्षत्रिय कुल का है, और मैं इसे जानता
हूँ। यह हमारी राजकुमारी के प्रणय का भिखारी है। मेरी इच्छा है कि इससे
उसका ब्याह हो जाय।
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