कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
“क्या?”
“यह छोकरी इस गाँव से
जाना नहीं चाहती। उधर पुलिस तंग कर रही है।”
“जाना नहीं चाहती,
क्यों?”
“वह तो घूम-घाम कर गढ़
में आ जाती है। खाने को मिल जाता है।...”
मैकू आगे की बात चुप होकर
कुछ-कुछ संकेत-भरी मुस्कराहट से कह देना चाहता
था।
ठाकुर के मन में हलचल
होने लगी। उसे दबाकर प्रतिष्ठा का ध्यान करके ठाकुर
ने कहा-
“तो मैं क्या करूँ?”
“सरकार! वह तो साँझ होते
ही पलाश के जंगल में अकेली चली जाती है। वहीं
बैठी हुई बड़ी रात तक गाया करती है।”
“हूँ!”
“एक दिन सरकार धमका दें,
तो हम लोग उसे ले-देकर आगे कहीं चले जायँ।”
“अच्छा।”
मैकू जाल फैलाकर चला आया।
एक हज़ार की बोहनी की कल्पना करते वह अपनी सिरकी
में बैठकर हुक़्क़ा गुड़गुड़ाने लगा।
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