कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बेला के हृदय में तीव्र
अनुभूति
जाग उठी थी। एक क्षण में उस दीन भिखारी की तरह-जो एक मुट्ठी भीख के बदले
अपना समस्त सञ्चित आशीर्वाद दे देना चाहता है - वह वरदान देने के लिए
प्रस्तुत हो गयी। मन्त्र-मुग्ध की तरह बेला ने उस ओढ़नी का घूँघट बनाया।
वह धीरे-धीरे उसके पीछे भीड़ में आ गयी। तालियाँ पिटीं। हँसी का ठहाका
लगा। वही घूँघट, न खुलने वाला घूँघट सायंकालीन समीर से हिल कर रह जाता था।
ठाकुर साहब हँस रहे थे। गोली दोनों हाथों से सलाम कर रहा था।
रात हो चली थी। भीड़ के
बीच गोली बेला को लिये जब फाटक के बाहर पहुँचा, तब
एक लड़के ने आकर कहा- ”एक्का ठीक है।”
तीनों सीधे उस पर जाकर
बैठ गये। एक्का वेग से चल पड़ा।
अभी ठाकुर साहब का दरबार
जम रहा था और नट के खेलों की प्रशंसा हो रही थी।
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