कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
जीवन
की किसी अलभ्य अभिलाषा से वञ्चित होकर जैसे प्राय: लोग विरक्त हो जाते
हैं, ठीक उसी तरह किसी मानसिक चोट से घायल होकर, एक प्रतिष्ठित जमींदार का
पुत्र होने पर भी, नन्हकूसिंह गुंडा हो गया था। दोनों हाथों से उसने अपनी
सम्पत्ति लुटायी। नन्हकूसिंह ने बहुत-सा रुपया खर्च करके जैसा स्वाँग खेला
था, उसे काशी वाले बहुत दिनों तक नहीं भूल सके। वसन्त ऋतु में यह
प्रहसनपूर्ण अभिनय खेलने के लिए उन दिनों प्रचुर धन, बल, निर्भीकता और
उच्छृंखलता की आवश्यकता होती थी। एक बार नन्हकूसिंह ने भी एक पैर में
नूपुर, एक हाथ में तोड़ा, एक आँख में काजल, एक कान में हजारों के मोती तथा
दूसरे कान में फटे हुए जूते का तल्ला लटकाकर, एक जड़ाऊ मूठ की तलवार,
दूसरा हाथ आभूषणों से लदी हुई अभिनय करनेवाली प्रेमिका के कन्धे पर रखकर
गाया था-
“कहीं बैगनवाली मिले तो
बुला देना।”
प्राय:
बनारस के बाहर की हरियालियों में, अच्छे पानीवाले कुओं पर, गंगा की धारा
में मचलती हुई डोंगी पर वह दिखलाई पड़ता था। कभी-कभी जूआखाने से निकलकर जब
वह चौक में आ जाता, तो काशी की रँगीली वेश्याएँ मुस्कराकर उसका स्वागत
करतीं और उसके दृढ़ शरीर को सस्पृह देखतीं। वह तमोली की ही दूकान पर बैठकर
उनके गीत सुनता, ऊपर कभी नहीं जाता था। जूए की जीत का रुपया मुठ्ठियों में
भर-भरकर, उनकी खिडक़ी में वह इस तरह उछालता कि कभी-कभी समाजी लोग अपना सिर
सहलाने लगते, तब वह ठठाकर हँस देता। जब कभी लोग कोठे के ऊपर चलने के लिए
कहते, तो वह उदासी की साँस खींचकर चुप हो जाता।
वह अभी वंशी के
जूआखाने से निकला था। आज उसकी कौड़ी ने साथ न दिया। सोलह परियों के नृत्य
में उसका मन न लगा। मन्नू तमोली की दूकान पर बैठते हुए उसने कहा-”आज सायत
अच्छी नहीं रही, मन्नू!”
|