कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
अहेरियों के वेश में
राजपुत्र और उसके समवयस्क जंगल में आये। किशोर भी अपना धनुष लिये एक ओर
खड़ा था। कुरंग पर तीर छूटे। किशोर का तीर कुरंग के कण्ठ को बेधकर
राजपुत्र की छाती में घुस गया। राजपुत्र अचेत होकर गिर पड़ा। किशोर पकड़
लिया गया।
इधर वन-पालिका राजा के
आने का समाचार सुनकर फूल खोजने
लगी थी। उस जंगल में अब कामिनी-कुसुम नहीं थे। उसने मधूक और दूर्वा की
सुन्दर माला बनाई, यही उसे मिले थे।
राजा क्रोध से उन्मत्त
थे।
प्रतिहिंसा से कड़ककर बोले-मारो!-बधिकों के तीर छूटे? वह कमनीय-कलेवर
किशोर पृथ्वी पर लोटने लगा। ठीक उसी समय मधूक-मालिका लिये वन-पालिका राजा
के सामने पहुँची।
कठोर नियति जब अपना विधान
पूर्ण कर चुकी थी, तब
कामिनी किशोर के शव के पास पहुँची! पागल-सी उसने माला राजा के ऊपर फेंकी
और किशोर को गोद में बैठा लिया। उसकी निश्चेष्ट आँखे मौन भाषा में जैसे
माँ-माँ कह रही थीं! उसने हृदय में घुस जानेवाली आँखों से एक बार राजा की
ओर देखा। और भी देखा - राजपुत्र का शव!
राजा एक बार आकाश और
पृथ्वी के बीच में हो गये। जैसे वह कहाँ-से-कहाँ चले आये। राजपुत्र का शोक
और क्रोध, वेग से बहती हुई बरसाती नदी की धारा में बुल्ले के समान बह गया।
उनका हृदय विषय-शून्य हो गया। एक बार सचेत होकर उन्होंने देखा और
पहचाना-अपना वही-”जीर्ण कौशेय उष्णीश।”-”वन-पालिका!”
“राजा”-कामिनी की आँखों
में आँसू नहीं थे।
“यह कौन था?”
गम्भीर स्वर में सर नीचा
किये वन-पालिका ने कहा-”अपराधी।”
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