कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
कादिर- जहाँपनाह! गुलाम
की खता माफ हो।
शाहआलम- (हँसते हुए) खता
कैसी, कादिर?
कादिर- (जलकर) हुजूर, देर
हुई।
शाहआलम- अच्छा, उसकी सजा
दी जायगी।
कादिर- (अदब से) लेकिन
हुजूर, मेरी भी कुछ अर्ज है।
बादशाह ने पूछा- क्या?
कादिर ने कहा- मुझे यही
सजा मिले कि मैं कुछ दिनों के लिये देहली से निकाल
दिया जाऊँ।
शाहआलम
ने कहा- सो तो बहुत बड़ी सजा है कादिर, ऐसा नहीं हो सकता। मैं तुम्हें कुछ
इनाम देना चाहता हूँ, ताकि वह यादगार रहे, और तुम फिर ऐसा कुसूर न करो।
कादिर ने हाथ बाँधकर कहा-
हुजूर! इनाम में मुझे छुट्टी ही मिल जाय, ताकि
कुछ दिनों तक मैं अपने बूढ़े बाप की खिदमत कर सकूँ।
शाहआलम- (चौंककर) उसकी
खिदमत के लिये मेरी दी हुई जागीर काफी है। सहारनपुर
में उसकी आराम से गुजरती है।
कादिर ने गिड़गिड़ाकर
कहा- लेकिन जहाँपनाह, लडक़ा होकर मेरा भी कोई फर्ज
है।
शाहआलम
ने कुछ सोचकर कहा- अच्छा, तुम्हें रुख्सत मिली और यादगार की तरह तुम्हें
एक-हजारी मनसब अता किया जाता है, ताकि तुम वहाँ से लौट आने में फिर देर न
करो।
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