कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
विलायती
पिक का वृचिस पहने, बूट चढ़ाये, हण्टिंग कोट, धानी रंग का साफा, अंग्रेजी
हिन्दुस्तानी का महासम्मेलन बाबू साहब के अंग पर दिखाई पड़ रहा है। गौर
वर्ण, उन्नत ललाट-उसकी आभा को बढ़ा रहे हैं। स्टेशन मास्टर से सामना होते
ही शेकहैंड करने के उपरान्त बाबू साहब से बातचीत होने लगी।
स्टेशन मास्टर- आप इस
वक्त कहाँ से आ रहे हैं?
मोहन- कारिंदों ने इलाके
में बड़ा गड़बड़ मचा रक्खा है, इसलिये मैं
कुसुमपुर-जो कि हमारा इलाका है-इंस्पेक्शन के लिए जा रहा हूँ।
स्टेशन मास्टर- फिर कब
पलटियेगा?
मोहन- दो रोज में। अच्छा,
गुड इवनिंग।
स्टेशन मास्टर, जो
लाइन-क्लियर दे चुके थे, गुड इवनिंग करते हुए अपने आफिस
में घुस गये।
बाबू मोहनलाल अंग्रेजी
काठी से सजे हुए घोड़े पर, जो पूर्व ही स्टेशन पर
खड़ा था, सवार होकर चलते हुए।
सरलस्वभावा
ग्रामवासिनी कुलकामिनीगण का सुमधुर संगीत धीरे-धीरे आम्र-कानन में से
निकलकर चारों ओर गूँज रहा है। अन्धकार गगन में जुगनू-तारे चमक-चमक कर
चित्त को चंचल कर रहे हैं। ग्रामीण लोग अपना हल कंधे पर रक्खे, बिरहा गाते
हुए, बैलों की जोड़ी के साथ, घर की ओर प्रत्यावर्तन कर रहे हैं।
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