कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
|
0 |
जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
ऊँचे तकिये पर चित्त लेकर
लम्बी साँस लेते हुए मनोहरदास ने कहना आरम्भ
किया-
हम
और तुम्हारे बड़े भाई गिरिधरदास साथ-ही-साथ जवाहिरात का व्यवसाय करते थे।
इस साझे का हाल तुम जानते ही हो। हाँ, तब बम्बई की दूकान न थी और न तो
आज-जैसी रेलगाड़ियों का जाल भारत में बिछा था; इसलिए रथों और इक्कों पर भी
लोग लम्बी-लम्बी यात्रायें करते। विशाल सफेद अजगर-सी पड़ी हुई उत्तरीय
भारत की वह सड़क, जो बंगाल से काबुल तक पहुँचती है सदैव पथिकों से भरी
रहती थी। कहीं-कहीं बीच में दो-चार कोस की निर्जनता मिलती, अन्यथा प्याऊ,
बनिये की दूकानें, पड़ाव और सरायों से भरी हुई इस सड़क पर बड़ी चहल-पहल
रहती। यात्रा के लिए प्रत्येक स्थान में घण्टे में दस कोस जानेवाले इक्के
तो बहुतायत से मिलते। बनारस इसमें विख्यात था।
हम और गिरिधरदास
होलिकादाह का उत्सव देखकर दस बजे लौटे थे कि प्रयाग के एक व्यापारी का
पत्र मिला। इसमें लाखों के माल बिक जाने की आशा थी और कल तक ही वह
व्यापारी प्रयाग में ठहरेगा। उसी समय इक्केवान को बुलाकर सहेज दिया और हम
लोग ग्यारह बजे सो गये। सूर्य की किरणें अभी न निकली थी; दक्षिण पवन से
पत्तियाँ अभी जैसे झूम रही थीं, परन्तु हम लोग इक्के पर बैठकर नगर को कई
कोस पीछे छोड़ चुके थे। इक्का बड़े वेग में जा रहा था। सड़क के दोनो ओर
लगे हुए आम की मञ्जरियों की सुगन्ध तीव्रता से नाक में घुस कर मादकता
उत्पन्न कर रही थी। इक्केवान की बगल में बैठे हुए रघुनाथ महाराज ने कहा-
सरकार बड़ी ठण्ड है।
कहना न होगा कि रघुनाथ
महाराज बनारस के एक नामी लठैत थे। उन दिनों ऐसी
यात्राओं में ऐसे मनुष्यों का रखना आवश्यक समझा जाता था।
|