कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
बालिका की अवस्था 15 वर्ष
की है। आलोक से
उसका अंग अन्धकार-घन में विद्युल्लेखा की तरह चमक रहा था। यद्यपि दरिद्रता
ने उसे मलिन कर रक्खा है, पर ईश्वरीय सुषमा उसके कोमल अंग पर अपना निवास
किये हुए है। मोहनलाल ने घोड़ा बढ़ाकर उससे कुछ पूछना चाहा, पर संकुचित
होकर ठिठक गये। परन्तु पूछने के अतिरिक्त दूसरा उपाय ही नहीं था। अस्तु,
रूखेपन के साथ पूछा- कुसुमपुर का रास्ता किधर है?
बालिका इस भव्य
मूर्ति को देखकर डरी, पर साहस के साथ बोली- मैं नहीं जानती। ऐसे सरल
नेत्र-संचालन से इंगित करके उसने ये शब्द कहे कि युवक को क्रोध के स्थान
में हँसी आ गयी और कहने लगा- तो जो जानता हो, मुझे बतलाओ, मैं उससे पूछ
लूँगा।
बालिका- हमारी माता जानती
होंगी।
मोहन- इस समय तुम कहाँ
जाती हो?
बालिका- (मचान की ओर
दिखाकर) वहाँ जो कई लड़के हैं, उनमें से एक हमारा भाई
है, उसी को खिलाने जाती हूँ।
मोहन- बालक इतनी रात को
खेत में क्यों बैठा है?
बालिका- वह रात-भर और
लडक़ों के साथ खेत में ही रहता है।
मोहन- तुम्हारी माँ कहाँ
है?
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