कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
तो इससे क्या? उसे बुलाओ
भी।
नहीं, मैं उसे न बुलवा
सकूँगा।
अच्छा, तो यही बताओ,
क्यों न बुलवाओगे?
वह बात सुनकर क्या करोगे?
सुनूँगा अवश्य-ठाकुर! यह
न समझना कि मैं तुम्हारी जमींदारी में इस समय
बैठा हूँ, इसलिए डर जाऊँगा।- मैंने हँसी से कहा।
जीवनसिंह ने कहा- तो
सुनो-
तुम
जानते हो कि देहातों में भाँटों का प्रधान काम है, किसी अपने ठाकुर के घर
उत्सवों पर प्रशंसा के कवित्त सुनाना। उनके घर की स्त्रियाँ घरों में
गाती-बजाती हैं। नन्दन भी इसी प्रकार मेरे घराने का आश्रित भाँट है। उसकी
लडक़ी रोहिणी विधवा हो गई-
मैंने बीच ही में टोक कर
कहा- क्या नाम बताया?
जीवन
ने कहा- रोहिणी। उसी साल उसका द्विरागमन होनेवाला था। नन्दन लोभी नहीं है।
उसे और भाँटों के सदृश माँगने में भी संकोच होता है। यहाँ से थोड़ी दूर पर
गंगा-किनारे उसकी कुटिया है। वहाँ वृक्षों का अच्छा झुरमुट है। एक दिन मैं
खेत देखकर घोड़े पर आ रहा था। कड़ी धूप थी। मैं नन्दन के घर के पास
वृक्षों की छाया में ठहर गया। नन्दन ने मुझे देखा। कम्बल बिछाकर उसने अपनी
झोपड़ी में मुझे बिठाया, मैं लू से डरा था। कुछ समय वहीं बिताने का निश्चय
किया।
जीवन को सफाई देते देखकर
मैं हँस पड़ा; परन्तु उसकी ओर ध्यान ने देकर जीवन
ने अपनी कहानी गम्भीरता से विच्छिन्न न होने दी।
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