कहानी संग्रह >> जयशंकर प्रसाद की कहानियां जयशंकर प्रसाद की कहानियांजयशंकर प्रसाद
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जयशंकर प्रसाद की सम्पूर्ण कहानियाँ
पीछे-पीछे सिपाही दौड़ता
हुआ आया। उसने कहा- हट पगली।
जीवन और हम चुप थे। उसने
एक बार घूम कर सिपाही की ओर देखा। सिपाही सहम
गया। पगली रोहिणी फिर गा उठी!
ढीठ! बिसारे बिसरत नाहीं
कैसे बसूँ जाय बनवाँ में,
बरजोरी बसे हो...
सहसा
सिपाही ने कर्कश स्वर से फिर डाँटा। वह भयभीय हो जैसी भगी, या पीछे हटी
मुझे स्मरण नहीं। परन्तु छत के नीचे गंगा के चन्द्रिका-रञ्जित प्रवाह में
एक छपाका हुआ। हतबुद्धि जीवन देखते ही रहे। मैं ऊपर अनन्त की उस दौड़ को
देखने लगा। रोहिणी चन्द्रमा का पीछा कर रही थी और नीचे छपाके से उठे हुए
कितने ही बुदबुदों में प्रतिबिम्बित रोहिणी की किरणें विलीन हो रही थीं।
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