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धर्म एवं दर्शन >> क्रोध

क्रोध

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :56
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9813
आईएसबीएन :9781613016190

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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन


स्वभावत: संघर्ष प्रिय मानव मन कौरव-पाण्डवों के चरित्र को अपना आदर्श बना लेता है। वह यह सोचकर सन्तुष्ट हो जाता है कि यदि द्वैपायन व्यास-जैसा महापुरुष पाण्डवों को आदर्श मानता है तो उसका अनुगमन करना क्या बुरा है?

देवर्षि नारद व्यास को श्रीमद्भागवत की रचना के लिये प्रेरित करते हैं और इस रचना के बाद ही व्यास, सन्तोष, शान्ति और प्रसन्नता का अनुभव करते हैं।

सद्गुण सम्पन्न श्री गणात्रा दंपति बहुत अच्छे साधक हैं, उनके स्वभाव की तेजस्विता और सेवा में अधीरता प्रभु से जुड़कर उनके लिये भूषण बन गयी। श्रीमती अंजुजी की श्रद्धा, समर्पणभाव जो मैंने अनुभव किया वह दुर्लभ है। सत्साहित्य प्रकाशन में उनकी यह सेवा असंख्य भक्तों के लिये प्रेरणारूप रहेगी। उनके स्वर्गीय माता पिता उनकी मातृ-पितृ एवं गुरुभक्ति देखकर अवश्य आश्वस्त एवं प्रसन्न होंगे।

सम्पूर्ण गणात्रा परिवार के प्रति मंगलकामना करते हुए प्रभु से प्रार्थना! उनके जीवन में सुचिता, सुमधुरता एवं सुमति बनाये रखें। निष्ठा एवं समर्पण भाव से कार्यरत डा. चन्द्रशेखर तिवारी इस सत्संकल्प को साकार करने में मन-प्राण से लगे हुए हैं। उनकी श्रद्धा बलवती हो! यही शुभाशीष।

रामायणम् ट्रस्ट के ट्रस्टीगण को मैं क्या धन्यवाद दूँ! वे तो मेरे अपने हैं। उनका स्नेह सद्भाव सदैव बना रहे यही प्रभु के चरणों में निवेदन!

अन्य सभी सेवादार एवं नरेन्द्र शुक्ल जिनके अथक परिश्रम से यह ग्रन्थ आप सभी सुधी साधकों को समर्पित है।

प्रभु की सुगंध, प्रभु का सौरभ प्रभु का स्पन्दन सबके जीवन में हो, यही मंगलकामना है।

त्वदीयं वस्तु श्रीराम तुभ्यमेव समर्पये।

सादर,
परम पूज्य महाराजश्री रामकिंकरजी की ओर से
मन्दाकिनी श्रीरामकिंकरजी

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