धर्म एवं दर्शन >> क्रोध क्रोधरामकिंकर जी महाराज
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मानसिक विकार - क्रोध पर महाराज जी के प्रवचन
भगवान् शंकर के क्रोध में एक बड़ा सुंदर संकेत था। हम जानते हैं कि यदि किसी के शरीर में कोई रोग हो जाय, तो उसे दवा दी जाती हे और पथ्य भी बताये जाते हैं कि क्या खाना है और क्या नहीं लेना है। जैसे, यदि किसी व्यक्ति को पेट का रोग हो जाय, तो वैद्य उसे अन्न छोड़ने की सलाह देते हैं, इसी प्रकार से शास्त्रों में किसी व्यक्ति के द्वारा अपराध होने पर, दण्ड और प्रायश्चित्त की व्यवस्था है। श्रुति ने मनुष्य की प्रकृति को समझकर ही यह व्यवस्था दी है। जब यह कहा जाता है कि मनुष्य पाप करने पर नरक में जाता है और पुण्य करने पर स्वर्ग प्राप्त करता है, तो लोग बार-बार यह प्रश्न करते हैं कि 'क्या सचमुच स्वर्ग या नरक होते भी हैं?' कबीरदासजी ने तो इसका व्यंग्य-भरा उत्तर दे दिया। किसी ने कबीरदासजी से पूछा - 'महाराज! आप कृपा करके हमें बतायें कि स्वर्ग में क्या-क्या होता है और नरक में क्या-क्या होता है?'' कबीरदास जी ने कहा- ''क्या बताऊँ?''
उधर से यदि कोई लौटकर आता, तब न मैं उससे स्वर्ग-नरक के हालचाल पूछता! मुझे तो बस इधर से उस ओर जाने वाले ही दिखायी देते हैं –
इसलिए उधर के बारे में क्या कह सकता हूँ? पर स्वर्ग और नरक का जो वर्णन किया गया है, यदि हम उसे व्यक्ति और समाज की वृत्ति से जोड़कर देखने की चेष्टा करें तो उसमें एक महत्त्वपूर्ण संकेत प्राप्त होता है।
वर्णन आता है कि नरक में यमराज दण्ड देते हैं और स्वर्ग में कहा गया कि वहाँ, धर्मराज पुरस्कार देते हैं। तो दण्ड और पुरस्कार हमें समाज में भी देखने को मिलते हैं। यहाँ इस लोक में भी अपराध करने पर व्यक्ति को कारागार में डाला जाता है और अच्छा काम करने पर पुरस्कार दिया जाता है। इसका तात्पर्य यही है कि मनुष्य के जीवन में तथा समाज में दण्ड और प्रलोभन की वृत्ति का महत्त्वपूर्ण स्थान है और इसके द्वारा समाज में बहुत से कार्य होते भी हैं। इसलिए ऐसा भी कहा जा सकता है कि 'लोभ' और 'भय' की वृत्तियाँ ही स्वर्ग और 'नरक' के मूल में देखी जा सकती हैं। व्यक्ति इसी प्रेरणा से सद्कर्म में प्रवृत्त होता है और बुरे कर्मों से डरता है। यदि हम किसी ईश्वर की व्यवस्था पर विश्वास करें तो फिर यह भी मानना ही चाहिये कि स्वर्ग और नरक भी होते हैं, जहाँ व्यक्ति को उसके कार्य के अनुसार दण्ड और पुरस्कार प्राप्त होते हैं।
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