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धर्म एवं दर्शन >> मानस और भागवत में पक्षी

मानस और भागवत में पक्षी

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :42
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9816
आईएसबीएन :9781613016121

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रामचरितमानस और भागवत में पक्षियों के प्रसंग


आप कृपा करके मुझे सगुन साकार ब्रह्म की आराधना बताइए। उनकी माँग तो बिल्कुल स्पष्ट थी, सगुण साकार ब्रह्म की उपासना और इन्होंने इसका उपदेश तो किया, लेकिन फिर अपना जो पक्षपात होता है, अपनी जो मान्यता होती है, उसके प्रति आग्रह तो होता ही है। लोमशजी के हृदय में भी ज्ञान के प्रति इसी प्रकार का आग्रह विद्यमान था और उन्होंने यह सोचा कि यह तो बड़ा ही योग्य अधिकारी है, क्यों न मैं इसको तत्त्वज्ञान का उपदेश देकर निर्गुण-निराकार ब्रह्म में स्थित करूँ! उसको भक्ति की भेदबुद्धि के स्थान पर ज्ञान की जो अभेद बुद्धि है, इसे मैं दे दूँ। तब अन्त में उपदेश करते हुए उन्होंने कहा कि जिस ब्रह्म या ईश्वर का तुम दर्शन करना चाहते हो, क्या वह तुमसे भिन्न है?-

सो तैं ताहि तोहि नहिं भेदा।
बारि बीचि इव गावहिं बेदा।। 7/110/6

वस्तुतः तुममें और मुझमें रंचमात्र भी कोई भेद नहीं है जैसे जल और तरंग में। सिद्धान्त चाहे कितना भी ऊँचा क्यों न हो! लेकिन यदि क्रमिक रूप से व्यक्ति के सामने न रखा जाय और सीधे उसको अन्तिम बात कह दी जाय तो उसका क्या परिणाम होगा? इसको यों कहें कि प्रत्येक कक्षा के प्रत्येक विद्यार्थी का एक स्तर होता है। जैसे ‘क’ अक्षर है, इस ‘क’ का अर्थ क्या है? पहली कक्षा में कबूतर दिखा कर पढ़ाया जाता है कि ‘क’ माने कबूतर। संस्कृत शब्दकोश में ‘क’ माने जल भी है, लेकिन प्रारम्भ में ‘क’ माने जल नहीं, ‘क’ माने कबूतर ही बताया जाता है, पर जब साहित्य की कक्षा में विद्यार्थी जाता है, आगे बढ़ता है तो बताया जाता है कि ‘क’ माने कबूतर नहीं है, ‘क’ माने जल होता है। विद्यार्थी जब और आगे बढ़ता है तो कहा जाता है कि ‘क’ माने ब्रह्म है। कबूतर से ले करके ब्रह्म तक में कौन-सा अर्थ ठीक है? इसका अभिप्राय यह है कि प्रारम्भ में ही यदि इस बात में उलझ जाइएगा कि क्या ठीक है और प्रथम कक्षा के विद्यार्थी को आप अपना ज्ञान देने की चेष्टा कीजिएगा तो उसकी शिक्षा तो अधूरी ही रह जाएगी। पहले उसे ‘क’ माने कबूतर ही पढ़ने दीजिए, बाद में क्रमशः आगे की ओर बढ़ाइएगा।  ‘रामायण’ में इस बात को बड़ा महत्त्व दिया गया है। भगवान् राम ने सुग्रीव से मित्रता करने के बाद आश्वासन दिया कि –

सखा  सोचु त्यागहु बल  मोरें।
सब बिधि घटब काज मैं तोरें।। 5/6/10

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