लोगों की राय

धर्म एवं दर्शन >> प्रेममूर्ति भरत

प्रेममूर्ति भरत

रामकिंकर जी महाराज

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :349
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9822
आईएसबीएन :9781613016169

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

भरत जी के प्रेम का तात्विक विवेचन


महूँ सनेह  सकोच बस सनमुख कही न बैन।
दरसन तृपित न आजु लगि पेम पियासे नैन।।

यहाँ तो कोई रोक नहीं। चरण-रज को चाहे हृदय पर धारण करें या माथे पर चढ़ावें और चाहे नेत्रों में लगावें। यह चरण-रज ही वह औषधि है, जिसकी खोज में वह वन-वन भटक रहे हैं। अयोध्या के सभाभवन में यही तो समस्या उत्पन्न हुई थी। जब सब लोगों ने एक स्वर में राज्यपद स्वीकार करने का आग्रह किया, तो व्याकुल हो गया रामविरही – इस राजमदरूप वारुणी के आविष्कार से और बोल ही तो पड़ा –

ग्रह ग्रहीत पुनि बात बस तेहि पुनि बीछी मार।
तेहि  पिआइअ  वारुनां  कहहु  कवन उपचार।।

वास्तव में वह वाक्य इतना समुचित था कि सभी लोग अवाक् रह गए। अपनी धारणा पर लज्जित होकर अधोग्राव बैठ गये। तब इस भवरोग के सच्चे वैद्य ने घोषणा की थी –

आपुनि दारुन दीनता कहउ सबहि सिरु नाइ।
देखें बिनु रघुबीर पद जिय कै जरनि न जाइ।।

आज वह संजीवन-मूरि का चूर्ण प्राप्त हो गया है – “पद-पंकज-पराग” के रूप में। विरह-संकुल श्री भरत की स्थिति वाणी के लिये अतीव अकथ हो गई। उनकी प्रेमविह्वलता को देख पक्षी, मृग, जड़, चेतन सभी प्रेममग्न होने लगे। चित्रकूट में एक अद्भुत व्यतिक्रम उपस्थित हो गया। जड़-चेतन बन गये और चेतन जड़। मार्ग दिखाने वाला भी इस सुरा की मादकता से न बच सका।

रामसखा स्वयं ही रास्ता भूल गये। “रामहिं भरतहिं भेंट न होई” की भावना वाले स्वार्थी देवगण भी इस प्रेम-भाव से अछूते न रह सके। हृदय का स्वार्थ और कलुषता विस्मृत हो गई। स्वयं ही मार्ग बताते हैं और पुष्प-वृष्टि करके पथ को कोमल बनाने के साथ ही अपने सद्भाव की भी वृष्टि करते हैं। इस अद्भुत “न भूतो न भविष्यति” दृश्य को देखकर सिद्ध, साधक सभी प्रेममग्न हो सहजानुराग की सराहना करने लगे – गोस्वामी जी के शब्दों में पढ़िये –

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book