जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
तीन पाउंड का कर
बालासुन्दरम् के किस्से ने गिरमिटिया हिन्दुस्तानियो के साथ मेरा सम्बन्ध जोड़ दिया। परन्तु उनपर कर लगाने का जो आन्दोलन चला, उसके परिणाम-स्वरुप मुझे उनकी स्थिति का गहरा अध्ययन करना पड़ा।
1894 के साल में गिरमिटिया हिन्दुस्तानियों पर हर साल 25 पौंड का अर्थात् 365 रुपये का कर लगाने के कानून की मसविदा नेटाल सरकार ने तैयार किया। उस मसविदे को पढकर मैं तो दिंगूढ़ ही हो गया। मैंने उसे स्थानीय कांग्रेस के सामने रखा। इस मामले में जो आन्दोलन करना उचित था, वह करने का एक प्रस्ताव कांग्रेस ने पास किया।
लगभग 1860 में जब नेटाल में बसे हुए गोरो में देखा कि वहाँ ईख की फसल अच्छी हो सकती हैं, तो उन्होंने मजदुरो की खोज शुरू की। मजदूर ने मिले तो न ईख पैदा हो सकती थी और न चीनी ही बन सकती थी। नेटाल के हब्शी यह मजदूरी नहीं कर सकते थे। इसलिए नेटाल-निवासी गोरो में भारत-सरकार के साथ विचार-विमर्श करके हिन्दुस्तानी मजदूरो को नेटाल जाने देने की अनुमति प्राप्त की। उन्हे पाँच साल तक मजदूरी करने का बंधन रहेगा और पाँच साल के बाद उन्हें स्वतंत्र रीति से नेटाल में बसने की छूट रहेगी। उनको जमीन का मालिक बनने का पूरा अधिकार भी दिया गया था। उस समय गोरे चाहते थे कि हिन्दुस्तानी मजदूर अपने पाँच साल पूरे होने के बाद जमीन जोते और अपने उद्यम का लाभ नेटाल को दे।
हिन्दुस्तानी मजदूरो ने यह लाभ आशा से अधिक दिया। साग-सब्जी खूब बोयी। हिन्दुस्तान की अनेक उत्तम तरकारियाँ पैदा की। जो साग-सब्जियाँ वहाँ पहले से पैदा होती थी उसके दाम सस्ते कर दिये। हिन्दुस्तान से आम लाकर लगाये। पर इसके साथ ही उन्होंने व्यापार भी शुरू कर दिया। घर बनाने के लिए जमीन खरीद ली और बहुतेरे लोग मजदूर न रह कर अच्छे जमींदार और मकान-मालिक बन गये। इस तरह मजदूरो में से मकान-मालिक बन जानेवालो के पीछे-पीछे वहाँ स्वतंत्र व्यापारी भी पहुँचे। स्व. सेठ अबूबकर आमद उनसे सबसे पहले पहुँचने वाले थे। उन्होंने वहाँ अपना कारोबार खूब जमाया।
|