जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
धर्म-संकट
मैंने जैसे दफ्तर किराये पर लिया, वैसे ही गिरगाँव में घर भी लिया। पर ईश्वर ने मुझे स्थिर न होने दिया। घर लिये अधिक दिन नहीं हुए थे कि इतने में मेरा दूसरा लड़का बहुत बीमार हो गया। उसे कालज्वर में जकड़ लिया। ज्वर उतरता न था। बेचैनी भी थी। फिर रात में सन्निपात के लक्षण भी दिखायी पड़े। इस बीमारी के पहले बचपन में उसे चेचक भी बहुत जोर की निकल चुकी थी।
मैंने डॉक्टर की सलाह ली। उन्होंने कहा, 'इसके लिए दवा बहुत कम उपयोगी होगी। इसे तो अंडे और मुर्गी का शोरवा देने की जरूरत हैं।'
मणिलाल की उमर दस साल की थी। उससे मैं क्या पूछता? अभिभावक होने के नाते निर्णय तो मुझी को करना था। डॉक्टर एक बहुत भले पारसी थे। मैंने कहा, 'डॉक्टर, हम सब अन्नाहारी है। मेरी इच्छा अपने लड़के को इन दो में से एक भी चीज देने की कोई उपाय नहीं बताइयेगा?'
डॉक्टर बोले, 'आपके लड़के के प्राण संकट में हैं। दूध और पानी मिलाकर दिया जा सकता हैं, पर इससे उसे पूरा पोषण नहीं मिल सकेगा। जैसा कि आप जानते हैं, मैं बहुतेरे हिन्दू कुटुम्बो में जाता हूँ। पर दवा के नाम पर तो हम उन्हे जो चीज दें, वे ले लेते हैं। मैं सोचता हूँ कि आप अपने लड़के पर ऐसी सख्ती न करे तो अच्छा हो।'
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