जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
उपवास
जिन दिनों मैंने दूध और अनाज को छोड़कर फलाहार का प्रयोग शुरू किया, उन्हीं दिनो संयम के हेतु से उपवास भी शुरू किये। मि. केलनबैक इसमे भी मेरे साथ हो गया। पहले मैं उपवास केवल आरोग्य की दृष्टि से करता था। एक मित्र की प्रेरणा से मैंने समझा कि देह दमन के लिए उपवास की आवश्यकता है। चूंकि मैं वैष्णव कुटुम्ब में पैदा हुआ था और चूंकि माताजी कठिन व्रतो का पालन करनेवाली थी, इसलिए देश में एकादशी आदि व्रत मैंने किये थे। किन्तु वे देखा-देखी अथवा माता-पिता को प्रसन्न करने के विचार से किये थे। ऐसे व्रतों से कई लाभ होता है, इसे न तो मैं उस समय समझा था, न मानता ही था। किन्तु उक्त मित्र को उपवास करते देखकर और अपने ब्रह्मचर्य व्रत को सहारा पहुँचाने के विचार से मैंने उनका अनुकरण करना शुरू किया और एकादशी के दिन उपवास रखने का निश्चय किया। साधारणतः लोग एकादशी के दिन दूध और फल खाकर समझते है कि उन्होंने एकादशी की है। पर फलाहारी उपवास तो अब मैं रोज ही करने लगा था। इसलिए मैंने पानी पानी की छूट रखकर पूरे उपवास शुरू किये।
उपवास के प्रयोगों के आरम्भिक दिनों में श्रावण का महीना पड़ता था। उस साल रमजान और श्रावण दोनों एकसाथ पड़े थे। गाँधी कुटुम्ब में वैष्णव व्रतों के साथ शैव व्रत भी पाले जाते थे। कुटुम्ब के लोग वैष्णव देवालयो की भाँति ही शिवालयो में भी जाते थे। श्रावण महीने का प्रदोष-व्रत कुटुम्ब में कोई-न-कोई प्रतिवर्ष करता ही था। इसलिए इस श्रावण मास का व्रत मैंने रखना चाहा।
इस महत्त्वपूर्ण प्रयोग का प्रारम्भ टॉल्सटॉय आश्रम में हुआ था। वहाँ सत्याग्रही कैदियो के कुटुम्बो की देखरेख करते हुए कैलनबैक और मैं दोनों रहते थे। उनमें बालक और नौजवान भी थे। उनके लिए स्कूल चलता था। इन नौजवानो में चार-पाँच मुसलमान थे। इस्लाम के नियमों का पालन करने में मैं उनकी मदद करता था और उन्हें बढावा देता था। नमाज वगैरा की सहूलियत कर देता था।
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