जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
भले-बुरे का मिश्रण
टॉल्सटॉय आश्रम में मि. केलनबैक ने मेरे सामने एक प्रश्न खड़ा किया। उनके उठाने से पहले मैंने उस प्रश्न पर विचार नहीं किया था।
आश्रम के कुछ लड़के ऊधमी और दुष्ट स्वभाव के थे। कुछ आवारा थे। उन्ही के साथ मेरे तीन लड़के थे। उस समय पले हुए दूसरे भी बालक थे। लेकिन मि. केलनबैक का ध्यान तो इस ओर ही था कि वे आवारा युवक औऱ मेरे लड़के एकसाथ कैसे रह सकते थे। एक दिन वे बोल उठे, 'आपका यह तरीका मुझे जरा भी नहीं जँचता। इन लड़को के साथ आप अपने लड़को को रखे, तो उसका एक ही परिणाम आ सकाता है। उन्हें इन आवारा लड़को की छूत लगेगी। इससे वे बिगड़ेगे नहीं तो और क्या होगा? '
मुझे इस समय तो याद नहीं है कि क्षणभर सोच में पडा था या नहीं, पर अपना जवाब मुझे याद है। मैंने कहा था, 'अपने लड़को और इन आवारा लड़को के बीच मैं भेद कैसे कर सकता हूँ? इस समय तो मैं दोनों के लिए समान रूप से जिम्मेदार हूँ। ये नौजवान मेरे बुलाये यहाँ आये है। यदि मैं इन्हें पैसे दे दूँ, तो आज ही ये जोहानिस्बर्ग जाकर वहाँ पहले की तरह फिर रहने लग जायेगे। यदि ये और इनके माता पिता यह मानते हो कि यहाँ आकर इन्होंने मुझ पर महेरबानी की है, तो इसमे आश्चर्य नहीं। यहाँ आने से इन्हें कष्ट उठाना पड़ रहा है, यह तो आप और मैं दोनों देख रहे है। पर मेरा धर्म स्पष्ट है। मुझे इन्हे यहीं रखना चाहिये। अतएव मेरे लड़के भी इनके साथ रहेंगे। इसके सिवा, क्या मैं आज से अपने लड़को को यह भेदभाव सिखाऊँ कि वे दूसरे कुछ लड़को की अपेक्षा ऊँचे है? उनके दिमाग में इस प्रकार के विचार को ठूँसना ही उन्हें गलते रास्ते ले जाने जैसा है। आज की स्थिति में रहने से वे गढ़े जायेंगे, अपने आप सारासार की परीक्षा करने लगेंगे। हम यह क्यों न माने कि यदि मेरे लड़कों में सचमुच कोई गुण है, तो उल्टे उन्हीं की छूत उनके साथियो को लगेगी? सो कुछ भी हो, पर मुझे तो उन्हें यहीं रखना होगा। और यदि ऐसा करने में कोई खतरा भी हो, तो उसे उठाना होगा।'
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