जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
क्या वह धमकी थी
अपने बड़े भाई की विधवा पत्नी और दूसरे कुटुम्बियों से मिलने के लिए मुझे बम्बई से राजकोट और पोरबन्दर जाना था। इसलिए मैं उधर गया। दक्षिण अफ्रीका में सत्याग्रह की लड़ाई के सिलसिले में मैंने अपनी पोशाक जिस हद तक गिरमिटिया मजदूरो से मिलती-जुलती की जा सकती थी, कर ली थी। विलायत में भी घर में मैं यही पोशाक पहनता था। हिन्दुस्तान आकर मुझे काठियावाड़ी पोशाक पहननी थी। दक्षिण अफ्रीका में मैंने उसे अपने साथ रखा था। अतएव बम्बई में मैं उसी पोशाक मैं उतर सका था। इस पोशाक में कुर्ता, अंगरखा, धोती और सफेद साफे का समावेश होता था। ये सब देशी मिल के कपड़े के बने हुए थे। बम्बई से काठियावाड़ मुझे तीसरे दर्जे में जाना था। उसमें साफा और अंगरखा मुझे झंझट मालूम हुए। अतएव मैंने केवल कुर्ता, धोती और आठ-दस आने की कश्मीरी टोपी का उपयोग किया। ऐसी पोशाक पहनने वाले की गिनती गरीब आदमी में होती थी। उस समय वीरमगाम अथवा वढ़वाण में प्लेग के कारण तीसरे दर्जे के यात्रियों की जाँच होती थी। मुझे थोड़ा बुखार था। जाँच करनेवाले अधिकारी ने मेरी हाथ देखास तो उस गरम लगा। इसलिए उसने मुझे राजकोट में डॉक्टर से मिलने का हुक्म दिया औऱ मेरा नाम लिख लिया।
बम्बई से किसी में तार या पत्र भेजा होगा। इसलिए वढ़वाण स्टेशन पर वहाँ के प्रसिद् प्रजा-सेवक दर्जी मोतीलाल मुझसे मिले। उन्होंने मुझ से वारमगाम की चुंगी-संबंधी जाँच-पड़ताल की और उसके कारण होने वाली परेशानियों की चर्चा की। मैं ज्वर से पीड़ित था, इसलिए बाते करने की इच्छा न थी। मैंने उन्हें थोड़े में ही जवाब दिया, 'आप जेल जाने को तैयार हैं?'
मैंने माना था कि बिना विचारे उत्साह में जवाब देनेवाले बहुतेरे युवको की भाँति मोतीलाल भी होगे। पर उन्होंने बहुत ढृढ़ता पूर्वक उत्तर दिया, 'हम जरूर जेल जायेंगे। पर आपको हमें रास्ता दिखाना होगा। काठियावाड़ी के नाते आप पर हमारा पहला अधिकार हैं। इस समय तो हम आपको रोक नहीं सकते, पर लौटते समय आपको वढ़वाण उतरना होगा। यहाँ के युवको का काम और उत्साह देख कर आप खुश होंगे। आप अपनी सेना में जब चाहेंगे तब हम भरती कर सकेंगे।'
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