लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा

बिहारी की सरलता


मौलाना मजहरुल हक और मोहन दास करमचंद गाँधी एक समय लंदन में पढते थे। उसके बाद बम्बई में सन् 1915 की कांग्रेस में मिले थे। उस साल वे मुस्लिम लीग के अध्यक्ष थे। उन्होंने पुराना पहचान बताकर कहा था कि आप कभी पटना आये, तो मेरे घर अवश्य पधारिये। इस निमंत्रण के आधार पर मैंने उन्हें पत्र लिखा और अपना काम बतलाया। वे तुरन्त अपनी मोटर लाये और मुझे अपने घर ले चलने का आग्रह किया। मैंने उनका आभार माना और उनसे कहा कि जिस जगह मुझे जाना है वहाँ के लिए पहली ट्रेन से रवाना कर दे। रेलवे गाइड से कुछ पता नहीं चल सकता था। उन्होंने राजकुमार शुक्ल से बाते की और सुझाया कि पहले मुझे मुजफ्फरपुर जाना चाहिये। उसी दिन मुजफ्फरपुर की ट्रेन जाती थी। उन्होंने मुझे उसमें रवाना कर दिया। उन दिनो आचार्य कृपलानी मुजफ्फरपुर में रहते थे। मैं उन्हें जानता था। जब मैं हैदराबाद गया था तब उनके महान त्याग की, उनके जीवन की और उनके पैसे से चलने वाले आश्रम की बात डॉ. चोइथराम के मुँह से सुनी थी। वे मुजफ्फरपुर कॉलेज में प्रोफेसर थे। इस समय प्रोफेसरी छोड़ चुके थे। मैंने उन्हे तार किया। ट्रेन आधी रात को मुजफ्फरपुर पहुँचती थी। वे अपने शिष्य-मंडल के साथ स्टेशन पर आये थे। पर उनके घरबार नहीं था। वे अध्यापक मलकानी के यहाँ रहते थे। मुझे उनके घर ले गये। मलकानी वहाँ के कॉलेज में प्रोफेसर थे। उस समय के वातावरण में सरकारी कॉलेज के प्रोफेसर का मुझे अपने यहाँ टिकाना असाधारण बात मानी जायेगी।

कृपालानी जी ने बिहार की और उसमें भी तिरहुत विभाग की दीन दशा की बात की और मेरे काम की कठिनाई की कल्पना दी। कृपालानीजी ने बिहारवालो के साथ घनिष्ठ संबन्ध जोड़ लिया था। उन्होंने उन लोगों से मेरे काम का जिक्र कर रखा था। सबेरे वकीलों का एक छोटा सा दल मेरे पास आया। उनमें से रामनवमीप्रसाद मुझ याद रह गये है। उन्होंने अपने आग्रह से मेरा ध्यान आकर्षित किया था। उन्होंने कहा, 'आप जो काम करने आये है, आपको तो हम-जैसो के यहाँ ठहरना चाहिये। गयाबाबू यहाँ के प्रसिद्ध वकील है। उनकी ओर से मैं आग्रह करता हूँ कि आप उनके घर ठहरिये। हम सब सरकार से डरते जरूर है। लेकिन हमसे जितनी बनेगी उतनी मदद हम आपकी करेंगे। राजकुमार शुक्ल की बहुत सी बाते सच है। दुःख इस बात का है कि आज हमारे नेता यहाँ नहीं है। बाबू ब्रजकिशोरप्रसाद औऱ राजेन्द्रप्रसाद को मैंने तार किये है। दोनों तुरन्त यहाँ आ जायेंगे और आपको पूरी जानकारी व मदद दे सकेंगे। मेंहरबानी करके आप गयाबाबू के यहाँ चलिये।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book