जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
उपवास - खेड़ा-सत्याग्रह
मजदूरो की हड़ताल समाप्त होने के बाद दम लेने को भी समय न मिला और मुझे खेड़ा जिले के सत्याग्रह का काम हाथ में लेना पड़ा। खेड़ा जिले में अकाल की-सी स्थिति होने के कारण खेड़ा के पाटीदार लोग लगान माफ कराने की कोशिश कर रहे थे। इस विषय में श्री अमृतलाल ठक्कर ने जाँच करके रिपोर्ट तैयार की थी। इस बारे में कोई निश्चित सलाह देने से पहले मैं कमिश्नर से मिला। श्री मोहनलाल पंड्या और श्री शंकरलाल परीख अथक परिश्रम कर रहे थे। वे स्व. गोकलदास कहानदास पारेख और विट्टलभाई पटेल के द्वारा धारासभा में आन्दोलन कर रहे थे। सरकार के पास डेप्युटेशन भी गये थे।
इस समय मैं गुजरात-सभा का सभापति था। सभा ने कमिश्नर और गवर्नर को प्रार्थना पत्र भेजे, तार भेजे, अपमान सहे। सभा उनकी धमकियों को पचा गयी। अधिकारियों का उस समय का ढंग आज तो हास्यजनक प्रतीत होता है। उन दिनो का उनका अत्यन्त हलका बरताव आज असंभव सा मालूम होता है।
लोगों की माँग इतनी साफ और इतनी साधारण थी कि उसके लिए लड़ाई लड़ने की जरूरत ही न होनी चाहिये थी। कानून यह था कि अगर फसल चार ही आना या उससे कम आवे, तो उस साल का लगान माफ किया जाना चाहिये। पर सरकारी अधिकारियों का अंदाज चार आने से अधिक था। लोगों द्वारा यह सिद्ध किया जा रहा था कि उपज चार आने से कम कूती जानी चाहिये, पर सरकार क्यों मानने लगी? लोगों की ओर से पंच बैठाने की माँग की गयी। सरकार को वह असह्य मालूम हुई। जितना अनुनय-विनय हो सकता था, सो सब कर चुकने के बाद और साथियो से परामर्श करने के पश्चात मैंने सत्याग्रह करने की सलाह दी।
|