जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
|
1 पाठकों को प्रिय |
महात्मा गाँधी की आत्मकथा
'प्याज़चोर'
चम्पारन हिन्दुस्तान के ऐसे कोने में स्थित था और वहाँ की लड़ाई को इस तरह अखबारों से अलग रखा जा सका था कि वहाँ से बाहर से देखनेवाले कोई आते नहीं थे। पर खेड़ा की लड़ाई अखबारों की चर्चा का विषय बन चुकी थी। गुजरातियो को इस नई वस्तु में विशेष रस आने लगा था। वे पैसा लुटाने को तैयार थे। सत्याग्रह की लड़ाई पैसे से नहीं चल सकती, उसे पैसे की कम से कम आवश्यकता रहती है, यह बात जल्दी उनकी समझ में नहीं आ रही थी। मना करने पर भी बम्बई के सेठो ने आवश्यकता से अधिक पैसे दिये थे और लड़ाई के अन्त में उसमें से कुछ रकम बच गयी थी।
दूसरी तरफ सत्याग्रही सेना को भी सादगी का नया पाठ सीखना था। मैं यह तो नहीं कह सकता कि वे पूरा पाठ सीख सके थे, पर उन्होंने अपनी रहन सहन में बहुत कुछ सुधार कर लिया था।
पाटीदारो के लिए भी यह लड़ाई नई थी। गाँव-गाँव घूमकर लोगों को इसका रहस्य समझाना पड़ता था। सरकारी अधिकारी जनता के मालिक नहीं, नौकर हैं, जनता के पैसे से उन्हें तनख्वाह मिलती हैं -- यह सब समझाकर उनका भय दूर करने का काम मुख्य था। और निर्भय होने पर भी विनय के पालन का उपाय बताना और उसे गले उतारना लगभग असम्भव सा प्रतीत होता था।
अधिकारियों का डर छोड़ने के बाद उनके द्वारा किये गये अपमानो का बदला चुकाने की इच्छा किसे नहीं होती ! फिर भी यदि सत्याग्रही अविनयी बनता है, तो वह दूध में जहर मिलने के समान हैं। पाटीदार विनय का पाठ पूरी तरह पढ़ नहीं पाये, इसे मैं बाद में अधिक समझ सका। अनुभव से मैं इस परिणाम पर पहुँचा कि विनय सत्याग्रह का कठिन से कठिन अंश है। यहाँ विनय का अर्थ केवल सम्मान पूर्वक वचन कहना ही नहीं हैं। विनय से तात्पर्य है, विरोधी के प्रति भी मन में आदर, सरल भाव, उसके हित की इच्छा औऱ तदनुसार व्यवहार।
|