जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पंजाब में
पंजाब में जो कुछ हुआ उसके लिए अगर सर माइकल ओडवायर ने मुझे गुनहगार ठहराया, तो वहाँ के कोई कोई नवयुवक फौजी कानून के लिए भी मुझे गुनहगार ठहराने में हिचकिचाते न थे। क्रोधावेश में भरे इन नवयुवको की दलील यह थी कि यदि मैंने सविनय कानून-भंग को मुलतवी न किया होता, तो जलियावाला बाद का कत्लेआम कभी न होता और न फौजी कानून ही जारी हुआ होता। किसी-किसी ने तो यह धमकी भी दी थी कि मेरे पंजाब जाने पर लोग मुझे जान से मारे बिना न रहेंगे।
किन्तु मुझे तो अपना कदम उपयुक्त मालूम होता था कि उसके कारण समझदार आदमियो में गलतफहमी होने की सम्भावना ही न थी। मैं पंजाब जाने के लिए अधीर हो रहा था। मैंने पंजाब कभी देखा न था। अपनी आँखो से जो कुछ देखने को मिले, उसे देखने की मेरी तीव्र इच्छा थी, और मुझे बुलानेवाले डॉ. सत्यपाल, डॉ. किचलू तथा प. रामभजदत्त चौधरी को मैं देखना चाहता था। वे जेल में थे। पर मुझे पूरा विश्वास था कि सरकार उन्हें लम्बे समय तक जेल में रख ही नहीं सकेगी। मैं जब-जब बम्बई जाता तब-तब बहुत से पंजाबी मुझ से आकर मिला करते थे। मैं उन्हें प्रोत्साहन देता था, जिसे पाकर वे प्रसन्न होते थे। इस समय मुझमे विपुल आत्मविश्वास था।
लेकिन मेरा जाना टलता जाता था। वाइसरॉय लिखते रहते थे कि 'अभी जरा देर है।'
इसी बीच हंटर-कमेटी आयी। उसे फौजी कानून के दिनो में पंजाब के अधिकारियों द्वारा किये गये कारनामो की जाँच करनी थी। दीनबन्धु एंड्रूज वहाँ पहुँच गये थे। उनके पत्रो में हृदयद्रावक वर्णन होते थे। उनके पत्रो की ध्वनि यह थी कि अखबारों में जो कुछ छपता था, फौजी कानून का जुल्म उससे कही अधिक था। पत्रो में मुझे पंजाब पहुँचने का आग्रह किया गया। दूसरी तरफ मालवीयजी के भी तार आ रहे थे कि मुझे पंजाब पहुँचना चाहिये। इस पर मैंने वाइसरॉय को फिर तार दिया।
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