जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
खिलाफ़त के बदले गोरक्षा
अब थोड़ी देर के लिए पंजाब के हत्याकांड को छोड़ दें।
कांग्रेस की तरफ से पंजाव की डायरशाही की जाँच चल रही थी। इतने में एक सार्वजनिक निमंत्रण मेरे हाथ में आया। उसमें स्व. हकीम साहब और भाई आसफअली के नाम थे। उसमें यह लिखा भी था कि सभा में श्रद्धानन्दजी उपस्थित रहनेवाले है। मुझे कुछ ऐसा ख्याल है कि वे उप-सभापति थे। यह निमंत्रण दिल्ली में खिलाफत के सम्बन्ध में उत्पन्न परिस्थिति का विचार करनेवाली औऱ सन्धि के उत्सव में सम्मिलित होने या न होने का निर्णय करनेवाली हिन्दू-मुसलमानों की एक संयुक्त सभा में उपस्थित होने का था। मुझे कुछ ऐसा याद है कि यह सभा नवम्बर महीने में हुई थी।
इस निमंतत्रण में यह लिखा था कि सभा में केवल खिलाफत के प्रश्न की ही चर्चा नहीं होगी, बल्कि गोरक्षा के प्रश्न पर भी विचार होगा और यह कि गोरक्षा साधने का यह एक सुन्दर अवसर बनेगा। मुझे यह वाक्य चुभा। इस निमंत्रण-पत्र का उत्तर देते हुए मैंने लिखा कि मैं उपस्थित होने की कोशिश करूँगा और यह भी लिखा कि खिलाफत और गोरक्षा को एकसाथ मिलाकर उन्हें परस्पर सौदे का सवाल नहीं बनाना चाहिये। हर प्रश्न का विचार उसके गुण-दोष की दृष्टि से किया जाना चाहिये।
मैं सभा में हाजिर रहा। सभा में उपस्थिति अच्छी थी। पर बाद में जिस तरह हजारों लोग उमडते थे, वैसा दृश्य वहाँ नहीं था। इस सभा में श्रद्धानन्दजी उपस्थित थे। मैंने उनके साथ उक्त विषय पर चर्चा कर ली। उन्हें मेरी दलील जँची और उसे पेश करने का भार उन्होंने मुझ पर डाला। हकीम साहब के साथ भी मैंने बात कर ली थी।
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