लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


रायचन्द भाई के प्रति इतना आदर रखते हुए भी मैं उन्हें धर्मगुरु के रूप अपने हृदय में स्थान न दे सका। मेरी वह खोज आज भी चल रहीं हैं।

हिन्दू धर्म में गुरुपद को जो महत्त्व प्राप्त हैं, उसमें मैं विश्वास करता हूँ। 'गुरु बिन ज्ञान न होय', इस वचन में बहुत कछ सच्चाई हैं। अक्षर-ज्ञान देनेवाले अपूर्ण शिक्षक से काम चलाया जा सकता हैं, पर आत्मदर्शन कराने वाले अपूर्ण शिक्षक से तो चलाया ही नहीं जो सकता। गुरुपद सम्पूर्ण ज्ञानी को ही दिया जा सकता हैं। गुरु की खोज में ही सफलता निहित हैं, क्योंकि शिष्य की योग्यता के अनुसार ही गुरु मिलता हैं। इसका अर्थ यह कि योग्यता-प्राप्ति के लिए प्रत्येक साधक को सम्पूर्ण प्रयत्न करने का अधिकार हैं, और इस प्रयत्न का फल ईश्वराधीन हैं।

तात्पर्य यह हैं कि यद्यपि मैं रायचन्द भाई को अपने हृदय का स्वामी नहीं बना सका, तो भी मुझे समय-समय पर उनका सहारा किस प्रकार मिला हैं, इसे हम आगे देखेंगे। यहाँ तो इतना कहना काफी होगा कि मेरे जीवन पर प्रभाव डालने वाले आधुनिक पुरुष तीन हैं: रायचन्ज भाई ने अपने सजीव सम्पर्क से, टॉलस्टॉय ने 'वैकुण्ठ तेरे हृदय में हैं' नामक अपनी पुस्तक से और रसिकन ने 'अन्टु दिस लास्ट' नामक पुस्तक से मुझे चकित कर दिया। पर इन प्रसंगों की चर्चा आगे यथास्य़ान होगी।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book