लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


वकालत करने में साहब के साथ झगड़ा बाधक बनता था। पोरबन्दर में एडमिनिस्ट्रेशन नाबालिगी शासन था। वहाँ राणा साहब के लिए सत्ता प्राप्त करने का प्रयत्न करना था। मेंर लोगों से लगान उचित से अधिक वसूल किया था। इसके सिलसिले में भी मुझे वहीं एडमिनिस्ट्रेटर से मिलना था। मैंने देखा कि एडमिनिस्ट्रेटर यद्यपि हिन्दुस्तानी हैं, तथापि उनका रोब-दाब तो साहब से भी अधिक हैं। वे होशियार थे, पर उनकी होशियारी का लाभ जनता को अधिक मिला हो, यह मैं देख न सका। राणा साहब को थोड़ी सत्ता मिली। कहना होगा कि मेरे लोगों को तो कुछ भी न मिला। उनके मामले की पूरी जाँच हो, ऐसा भी मैंने अनुभव नहीं किया।

इसलिए यहाँ भी मैं थोड़ा निराश ही हुआ। मैंने अनुभव किया की न्याय नहीं मिला। न्याय पाने के लिए मेरे पास कोई साधन न था। बहुत करे तो बड़े साहब के सामने अपील की जा सकती हैं। वे राय देंगे, 'हम इस मामले में दखल नहीं दे सकते।' ऐसे फैसलों के पीछे कोई कानून-कायदा हो, तब तो आशा भी की जा सके। पर यहाँ तो साहब की मर्जी ही कानून हैं।

मैं अकुलाया।

इसी बीच भाई के पास पोरबन्दर की एक मेंनन फर्म का संदेशा आया : 'दक्षिण अफ्रीका में हमारा व्यापार हैं। हमारी फर्म बड़ी हैं। वहाँ हमारा एक बड़ा मुकदमा चल रहा हैं। चालीस हजार पौड़ का दावा हैं। मामला बहुत लम्बे समय से चल रहा हैं। हमारे पास अच्छे-से-अच्छे वकील-बारिस्टर है। अगर आप अपने भाई को भेजें, तो वे हमारी मदद करें और उन्हें भी कुछ मदद मिल जाये। वे हमारा मामला हमारे वकील को अच्छी तरह समझा सकेंगे। इसके सिवा, वे नया देश देखेंगे और कई लोगों से उनकी जान-पहचान होगी।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book