लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


'तो आप मेरे लिए किसी तरह जगह निकाल ही नहीं सकते?'

अफसर ने मेरी तरफ देखा। फिर वह हँसा और बोला, 'एक उपाय हैं। मेरे केबिन में एक बर्थ खाली रहती हैं। उसे हम यात्री को को नहीं देते, पर आपको मैं वह जगह देने के लिए तैयार हूँ।' मैं खुश हुआ। सेठ से बात करके टिकट कटाया, और 1893 के अप्रैल महीने में उमंगो से भीरा मैं दक्षिण अफ्रीका में अपना भाग्य आजमाने के लिए रवाना हो गया।

पहला बन्दर लामू पड़ता था। वहाँ पहुँचने में करीब तेरह दिन लगे। रास्ते में कप्तान से अच्छी मित्रता हो गयी। कप्तान को शतरंज खेलने का शौक था, पर वह अभी नौसिखुआ ही था। उसे अपने से कमजोर खलनेवाले साथी की जरूरत थी। इसलिए उसने मुझे खेलने के लिए न्योता। मैंने शतरंज की खेल कभी देखा न था। उसके विषय में सुना काफी था। खलनेवाले कहते थे कि इस खेल में बुद्धि का खासा उपयोग होता हैं। कप्तान ने कहा कि वह खुद मुझे सिखायेगा। मैं उसे अच्छा शिष्य मिला, क्योंकि मुझमे धैर्य था। मैं हारता ही रहता था। इससे कप्तान का सिखाने का उत्साह बढ़ता जाता था। मुझे शतरंज का खेल पसन्द पड़ा, पर मेरा यह शौक कभी जहाज के नीचे न उतरा। उसमें मेरी गति राजा-रानी आदि की चाल जान लेने से अधिक न बढ़ सकी।

लामू बन्दर आया। स्चीमर वहाँ तीन-चार घंटे ठहरनेवाला था। मैं बन्दर देखने नीचे उतरा। कप्तान भी गया था। उसने मुझसे कहा, 'यहाँ का बन्दर दगाबाज हैं। तुम जल्दी लौट आना।'

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book