जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैंने कहा, 'मेरे पास पहले दर्जे का टिकट हैं।'
उसने जबाव दिया, 'इसकी कोई बात नहीँ। मैं तुम्हें कहता हूँ कि तुम्हे आखिरी डिब्बे जाना हैं।'
यह निश्चय करके मैंने दूसरी ट्रेन में जैसे भी हो आगे ही जाने का फैसला किया।
सबेरे ही सबरे मैंने जनरल मैंनेजर को शिकायत का लम्बा तार भेजा। दादा अब्दुल्ला को भी खबर भेजी। अब्दुल्ला सेठ तुरन्त जनरल मैंनेजर से मिले। जनरल मैंनेजर ने अपने आदमियों के व्यवहार का बचाव किया, पर बतलाया कि मुझे बिना रुकावट के मेरे स्थान तक पहुँचाने के लिए स्टेशन मास्टर को कह दिया गया हैं। अब्दुल्ला सेठ ने मेंरित्सबर्ग के हिन्दू व्यापारियो को भी मुझसे मिलने और मेरी सुख-सुविधा का ख्याल रखने का तार भेजा और दूसरे स्टेशनों पर भी इसी आशय के तार रवाना किये। इससे व्यापारी मुझे मिलने स्टेशन पर आये। उन्होंने अपने ऊपर पड़ने वाले कष्टों की कहानी मुझे सुनायी और मुझ से कहा कि आप पर जा बीती है, उसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं हैं। जब हिन्दुस्तानी लोग पहले या दूसरे दर्जें में सफर करते हैं तो अधिकारियों और यात्रियों की तरफ से रुकावट खडी होती ही हैं। दिन एसी ही बाते सुनने में बीता। रात पड़ी। मेरे लिए जगह तैयार ही थी। बिस्तर का जो टिकट मैंने डरबन में काटने से इनकार किया था, वह मेंरित्सबर्ग में कटाया। ट्रेन मुझे चार्ल्सटाउन की ओर ले चली।
'मैं कहता हूँ कि मुझे इस डिब्बें में डरबन से बैठाया गया हैं और इसी में जाने का इरादा रखता हूँ।'
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