जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
मैं तो पहले दर्जे के डिब्बे में बैठा। ट्रेन चली। जर्मिस्टन पहुँचने पर गार्ड टिकट जाँचने आया। मुझे देखते ही खीझ उठा। अंगुली से इशारा करके मुझसे कहा, 'तीसरे दर्जे में जाओ।' मैंने पहले दर्जे का अपना टिकट दिखाया। उसने कहां,'कोई बात नहीं, जाओ तीसरे दर्जे में।'
इस डिब्बे में एक ही अंग्रेज यात्री था। उसने गार्ड का आड़े हाथो लिया, 'तुम इन भले आदमी को क्यो परेशान करते हो? देखते नहीं हों, इनके पास पहले दर्जे का टिकट हैं? मुझे इनके बैठने से तनिक भी कष्ट नहीं हैं।'
यों कहकर उसने मेरी तरफ देखा और कहा, 'आप इततीनान से बैठे रहिये।'
गार्ड बड़बडाया. 'आपको कुली के साथ बैठना हैं तो मेरा क्या बिगडता हैं।' और चल दिया।
रात करीब आठ बजे ट्रेन प्रिटोरिया पहुँची।
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