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जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

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महात्मा गाँधी की आत्मकथा


मि. जॉन्स्टन ने कहा,'मैं आपको विश्वास दिलाता हूँ कि मेरे मन में तो काले-गोरे का कोई भेद नहीं हैं, पर मेरे ग्राहक सब गोरे हैं। यदि मैं आपको भोजन गृह में भोजन कराऊँ, तो मेरे ग्राहक शायद बुरा मानेंगे और शायद वे चले जायेंगे।'

मैंने जवाब दिया,'आपको मुझे एक रात के लिए रहने दे रहे हैं, इसे भी मैं आपका उपकार मानता हूँ। इस देश की स्थिति से मैं कुछ कुछ परिचित हो चुका हूँ। मैं आपकी कठिनाई को समझ सकता हूँ। मुझे आप खुशी से मेरे कमरे में खाना दीजिये। कल तक मैं दूसरा प्रबंध कर लेने की आशा रखता हूँ। '

मुझे कमरा दिया गया। मैंने उसमें प्रवेश किया। एकान्त मिलने पर भोजन की राह देखता हुआ मैं विचारो में डूब गया। इस होटल में अधिक यात्री नहीं रहते थे। कुछ देर बाद भोजन के साथ वेटर को आता देखने के बदले मैंने मि. जॉन्स्टन को देखा। उन्होंने कहा,'मैंने आपको कमरे में खाना देने की बात कही थी। परक मैंने उसमें शरम महसूस की, इसलिए अपने ग्राहको से आपके विषय में बातचीत करके उनकी राय जानी। आप भोजन गृह में बैठकर भोजन करे तो उन्हें कोई आपत्ति नहीँ हैं। इसके अलावा आप यहाँ जितने दिन भी रहना चाहे, उनकी ओर से कोई रुकावट नहीं होगी। इसलिए अब आप चाहे तो भोजन गृह में आइये और जब तक जी चाहे यहाँ रहियें। '

मैंने फिर उनका उपकार माना और भोजन गृह में गया। निश्चिंत होकर भोजन किया।

दूसरे दिन सबेरे मैं वकील के घर गया। उनका नाम था ए. डब्ल्यू बेकर। उनसे मिला। अब्दुल्ला सेठ ने मुझे उनके बारे में कुछ बता दिया था। इसलिए हमारी पहली मुलाकात से मुझे कोई आश्चर्य न हूआ। वे मुझ से प्रेमपूर्वक मिले और मेरे बारे में कुछ बाते पूछी, ज मैंने उन्हें बतला दी। उन्होंने कहा, 'बारिस्टर के नाते तो आपका कोई उपयोग हो ही न सकेगा।

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