जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
पहला सुझाव तो यह था कि गिरमिट पूरा होने के कुछ दिन पहले ही हिन्दुस्तानियो को जबरदस्ती वापस भेज दिया जाय, ताकि उनके इकरारनामे की मुद्दत हिन्दुस्तान में पूरी हो। पर इस सुझाव के भारत-सरकार मानने वाली नहीं थी। इसलिए यह सुझाव दिया गया कि:
• मजदूरी का इकरार पूरा हो जाने पर गिरमिटया वापस हिन्दुस्तान चला जाये, अथवा
• हर दूसरे साल नया गिरमिट लिखवाये और उस हालत में हर बार उसके वेतन में कुछ बढ़ोतरी की जाये;
• अगर वह वापस न जाये और मजदूरी का नया इकरारनामा भी न लिखे, तो हर साल 25 पौंड का कर दे।
इन सुझावो को स्वीकार कराने के लिए सर हेनरी बीन्स और मि. मेंसन का डेप्युटेशन हिन्दुस्तान भेजा गया। तब लॉर्ड एलविन वायसरॉय थे। उन्होंने 25 पौंड का कर तो नामंजूर कर दिया, पर वैसे हरएक हिन्दुस्तानी से 3 पौड़ का कर लेने की स्वीकृति दे दी। मुझे उस समय ऐसा लगा था और अब भी लगता हैं कि वायसरॉय की यह गम्भीर भूल थी। इसमे उन्होंने हिन्दुस्तान के हित का तनिक भी निचार नहीं किया। नेटाल के गोरो के लिए ऐसी सुविधा कर देना उनका कोई धर्म नहीं था। तीन-चार साल के बाद यह कर हर वैसे (गिरमिट-मुक्त) हिन्दुस्तानी की स्त्री से और उसके हर 16 साल और उससे बड़ी उमर के लड़के और 13 साल या उससे बड़ी उमर की लड़की से भी लेने का निश्चय किया गया। इस प्रकार पति -पत्नी और दो बच्चो वाले कुटुम्ब से, जिसमे पति को अधिक से अधिक 14 शिलिंग प्रतिमास मिलते हो, 12 पौंड अर्थात् 180 रुपयो का कर लेना भारी जुल्म माना जायेगा। दुनिया में कही भी इस स्थिति के गरीब लोगों से ऐसा भारी कर नहीं लिया जाता था।
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