जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
स्वावलम्बन की यह खूबी मैं मित्रो को समझा नहीं सका।
मुझे कहना चाहिये कि आखिर धोबी के धंधे में अपने काम लायक कुशलता मैंने प्राप्त कर ली थी और घर की घुलाई धोबी की धुलाई से जरा भी घटिया नहीं होती थी। कालर का कड़ापन और चमक धोबी के धोये कालर से कम न रहती थी। गोखले के पास स्व. महादेव गोविन्द रानडे की प्रसादी-रुप में एक दुपटा था। गोखले उस दुपटे को अतिशय जतन से रखते थे और विशेष अवसर पर ही उसका उपयोग करते थे। जोहानिस्बर्ग में उनके सम्मान में जो भोज दिया गया था, वह एक महत्त्वपूर्ण अवसर था। उस अवसर पर उन्होंने जो भाषण दिया वह दक्षिण अफ्रीका में उनका बड़े-से-बड़ा भाषण था। अतएव उस अवसर पर उन्हे उक्त दुपटे का उपयोग करना था। उसमें सिलवटे पड़ी हुई थी और उस पर इस्तरी करने की जरूरत थी। धोबी का पता लगाकर उससे तुरन्त इस्तरी कराना सम्भव न था। मैंने अपनी कला का उपयोग करने देने की अनुमति गोखले से चाही।
'मैन तुम्हारी वकालत का तो विश्वास कर लूँगा, पर इस दुपटे पर तुम्हे अपनी धोबी-कला का उपयोग नहीं करने दूँगा। इस दुपटे पर तुम दाग लगा दो तो?इसकी कीमत जानते हो?' यो कहकर अत्यन्त उल्लास से उन्होंने प्रसादी की कथा मुझे सुनायी।
मैंने फिर भी बिनती की और दाग न पड़ने देने की जिम्मेदारी ली। मुझे इस्तरी करने की अनुमति मिली और अपनी कुशलता का प्रमाण-पत्र मुझे मिल गया ! अब दुनिया मुझे प्रमाण-पत्र न दे तो भी क्या?
जिस तरह मैं धोबी की गुलामी से छूटा, उसी तरह नाई की गुलामी से भी छूटने का अवसर आ गया। हजामत तो विलायत जानेवाले सब कोई हाथ से बनाना सीख ही लेते है, पर कोई बाल छाँटना भी सीखता होगा, इसका मुझे ख्याल नहीं हैं। एक बार प्रिटोरिया में मैं एक अंग्रेज हज्जाम की दुकान पर पहुँचा। उसने मेरी हजामत बनाने से साफ इनकार कर दिया और इनकार करते हुए जो तिरस्कार प्रकट किया, सो घाते में रहा। मुझे दुख हुआ। मैं बाजार पहुँचा। मैंने बाल काटने की मशीन खरीदी और आईने के सामने खडे रहका बाल काटे। बाल जैसे-तैस कट तो गये, पर पीछे के बाल काटने में बड़ी कठिनाई हुई। सीधे तो वे कट ही न पाये। कोर्ट में खूब कहकहे लगे।
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