जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग सत्य के प्रयोगमहात्मा गाँधी
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महात्मा गाँधी की आत्मकथा
इस बीच परिस्थितियाँ भी अपना काम कर रही थी। बोअरों की तैयारी, ढृढता, वीरता इत्यादि अपेक्षा से अधिक तेजस्वी सिद्ध हुई। सरकार को बहुत से रंगरुटो की जरूरत पड़ी और अन्त में हमारी बिनती स्वीकृत हुई।
हमारी इस टुकड़ी में लगभग ग्यारह सौ आदमी थे। उनमें करीब चालीस मुखिया थे। दूसरे कोई तीन सौ स्वतंत्र हिन्दुस्तानी भी रंगरुटो में भरती हुए थे। डॉ. बूथ भी हमारे साथ थे। उस टुकड़ी ने अच्छा काम किया। यद्यपि उसे गोला-बारुद की हद के बाहर ही रहकर काम करना होता था और 'रेड क्रॉस' का संरक्षण प्राप्त था, फिर भी संकट के समय गोला-बारुद की सीमा के अन्दर काम करने का अवसर भी हमे मिला। ऐसे संकट में न पड़ने का इकरार सरकार ने अपनी इच्छा से हमारे साथ किया था, पर स्पियांकोप की हार के बाद हालत बदल गयी। इसलिए जनरल बुलर ने यह संदेशा भेजा कि यद्यपि आप लोग जोखिम उठाने के लिए वचन-बद्ध नहीं हैं, तो भी यदि आप जोखिम उठा कर घायल सिपाहियों और अफसरो को रणक्षेत्र से उठाकर और डोलियों में डालकर ले जाने को तैयार हो जायेंगे तो सरकार आपका उपकार मानेगी। हम तो जोखिम उठाने को तैयार ही थे। अतएव स्पियांकोप की लड़ाई के बाद हम गोला-बारुद की सीमा के अन्दर काम करने लगे।
इन दिनो सबको कई बार दिन में बीस-पचीस मील की मंजिल तय करनी पड़ती थी और एक बार तो घायलो को ड़ोली में डालकर इतने मील चलना पड़ा था। जिन घायल योद्धाओ को हमे ले जाना पड़ा, उनमें जनरल वुडगेट वगैरा भी थे।
छह हफ्तो के बाद हमारी टुकड़ी को बिदा दी गयी। स्पियांकोप और वालक्रान्ज की हार के बाद लेडी स्मिथ आदि स्थानो को बोअरों के घेरे में से बड़ी तेजी के साथ छुडाने का विचार ब्रिटिश सेनापति में छोड दिया था, और इग्लैंड तथा हिन्दुस्तान से और अधिक सेना के आने की राह देखने लगे तथा धीमी गति से काम करने का निश्चय किया था।
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