लोगों की राय

जीवनी/आत्मकथा >> सत्य के प्रयोग

सत्य के प्रयोग

महात्मा गाँधी

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2017
पृष्ठ :716
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9824
आईएसबीएन :9781613015780

Like this Hindi book 1 पाठकों को प्रिय

महात्मा गाँधी की आत्मकथा


उस समय तो मुझे जान पड़ा कि मेरी मर्दानगी को बट्टा लगा और मैंने चाहा कि घरती जगह दे तो मैं उसमें समा जाऊँ। पर इस तरह बचने के लिए मैंने सदा ही भगवान का आभार माना हैं। मेरे जीवन में ऐसे ही दुसरे चार प्रसंग और आये हैं। कहना होगा कि उनमें से अनेकों में, अपने प्रयत्न के बिना, केवल परिस्थिति के कारण मैं बचा हूँ। विशुद्ध दृष्टि से तो इल प्रसंगों में मेरा पतन ही माना जायेगा। चूँकि विषय की इच्छा की, इसलिए मैं उसे भोग ही चुका। फिर भी लौकिक दृष्टि से, इच्छा करने पर भी जो प्रत्यक्ष कर्म से बचता हैं, उसे हम बचा हुआ मानते हैं ; और इन प्रसंगो में मैं इसी तरह, इतनी ही हद तक, बचा हुआ माना जाऊँगा। फिर कुछ काम ऐसे हैं, जिन्हे करने से बचना व्यक्ति के लिए और उसके संपर्क में आने वालों के लिए बहुत लाभदायक होता हैं, और जब विचार शुद्धि हो जाती हैं तब उस कार्य में से बच जाने कि लिए वब ईश्वर का अनुगृहित होता हैं। जिस तरह हम यह अनुभव करते है कि पतल से बचने का प्रयत्न करते हूए भी मनुष्य पतित बनता हैं, उसी तरह यह भी एक अमुभव-सिद्ध बात हैं कि गिरना चाहते हुए भी अनेक संयोगों के कारण मनुष्य गिरने से बच जाता हैं। इसमें पुरुषार्थ कहाँ हैं, दैव कहाँ हैं, अय़वा किन नियमों के वश होकर मनुष्य आखिर गिरता या बचता हैं, यो सारे गूढ़ प्रश्न हैं। इसका हल आज तक हुआ नहीं और कहना कठिन हैं कि अंतिम निर्णय कभी हो सकेगा या नहीं।

पर हम आगे बढ़े। मुझे अभी तक इस बात का होश नहीं हुआ कि इन मित्र की मित्रता अनिष्ट हैं। वैसा होने से पहले मुझे अभी कुछ और कड़वे अनुभव प्राफ्त करने थे। इसका बोध तो मुझे तभी हुआ जब मैंने उनके अकल्पित दोषों का प्रत्यक्ष दर्शन किया। लेकिन मैं यथा संभव समय के क्रम के अनुसार अपने अनुभव लिख रहा हूँ, इसलिए दुसरे अनुभव आगें आवेंगे।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book